खुदी को कर बुलंद इतना कि खुदा बंदे से खुद पूछे बता तेरी रजा क्या है।
एक कामयाब इंसान बनने के लिए जरूरी नहीं कि रुपयों की पोटली लेकर बैठा जाए। जरूरत होती है एक ऐसे दिमाग की जो आपके लिए कुछ इस प्रकार की रणनीति तैयार कर दे जो आपके लिए रास्ते खोलती चली जाए।
बात करते हैं एक एंटरप्रेन्योर के तौर पर ‘बुक माय शो’ के ओनर आशीष हेमरजानी की। जिन्होंने पिछले 16 सालों में कई उतार-चढ़ाव देखे हैं। लेकिन वे जितनी बार गिरे उतनी ही बार उन्हें फिर से उठकर अपने लक्ष्य की ओर बढ़ने की प्रेरणा मिली। स्पाइडरमैन की तरह आज अपने प्रयासों से उन्होंने एक ऐसा मुकाम हासिल कर लिया है जहां पहुंचने की तमन्ना हर एंटरप्रेन्योर की होती है।
आशीष हेमरजानी ने नौकरी छोड़ अपना बिजनेस शुरू किया और आज उनकी कंपनी का टर्नओवर अरबों में पहुंच चुका है। मुंबई यूनिवर्सिटी से एमबीए करने के बाद आशीष का अगला पड़ाव था नौकरी। 1997 में एडवरटाइजिंग कंपनी हिंदुस्तान थॉमसन एसोसिएट्स के साथ उन्होंने अपने कॅरिअर की शुरुआत की। इसी दौरान आशीष का दक्षिण अफ्रीका जाना हुआ। यहां इंटरनेट के माध्यम से मिलने वाली सुविधाओं से प्रभावित होकर 24 साल के आशीष के मन में नए-नए आइडिया आने लगे। जिनके चलते उन्होंने यहां फैनडैंगो और टिकटमास्टर जैसी इंटरनेशनल टिकटिंग कंपनियों की वेबसाइट खंगाली। अफ्रीका से लौटते हुए पूरे सफर के दौरान आशीष इन्हीं आइडियाज के बारे में सोचते रहे।
मूवी के टिकट बेचने का फैसला
आशीष ने अपने देश में टेलीफोन और इंटरनेट के जरिए मूवी के टिकट बेचने का फैसला लिया और इसके लिए नौकरी भी छोड़ दी। यह वह दौर था जब सिनेमा के टिकट बेचना अच्छा नहीं समझा जाता था। ऐसे में यह फैसला लेना काफी मुश्किल था। चुनौतियों के बावजूद उन्होंने 1999 में बिग ट्री एंटरटेनमेंट की स्थापना की। इस दिशा में पहला कदम उठाते हुए आशीष ने अपने बिजनेस प्लान के बारे में बताते हुए चेज कैपिटल को एक ईमेल भेजा। करीब सात दिन बाद वहां से जवाब आया और आधा मिलियन डॉलर की फंडिंग के निवेश के साथ उन्होंने कारोबार की शुरुआत की। इस दौरान देश कम्प्यूटर से परिचय कर ही रहा था, कम लोगों के पास क्रेडिट कार्ड हुआ करते थे और नेट बैंकिंग से तो कोई भी वाकिफ नहीं था। दूसरी परेशानी यह थी कि यहां थिएटरों और सिंगल स्क्रीन्स में ई-टिकटिंग सॉफ्टवेयर का अभाव था, ऐसे में आशीष पहले थिएटरों से बड़ी मात्रा में टिकट खरीदते और फिर कस्टमर्स को उपलब्ध करवाते थे।
विपरीत परिस्थिति में ढूंढी कामयाबी की मंजिल
तमाम चुनौतियों के बीच आशीष ने हिम्मत नहीं हारी। 2001 में बिग ट्री के पास 160 कर्मचारियों की टीम तैयार हो चुकी थी कि तभी डॉट कॉम ठप पड़ गया। इससे उबरने के लिए आशीष को सख्त कदम भी उठाने पड़े। लगातार कोशिशों के बल पर उन्होंने कंपनी को संकट के दौर से निकाला और 2002-04 में कंपनी को सॉफ्टवेयर सॉल्यूशन प्रोवाइडर का दर्जा दिलाया, जो थिएटरों को ऑटोमेटेड टिकटिंग सॉफ्टवेयर प्रदान करती है। 2007 में आशीष ने बिग ट्री को बुक माय शो के नाम से रीलॉन्च किया। आज बुक माय शो 1000 करोड़ के वैल्यूएशन क्लब में शामिल हो गया है और कंपनी ने ऑनलाइन एंटरटेनमेंट टिकटिंग का 90 फीसदी से ज्यादा बिजनेस अपने नाम कर लिया है।
Nice to know ...!
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