ऐसे समय जबमहाराष्ट्र में सूखेके कारण किसानखुद और अपनेपरिवार के लिएदो जून कीरोटी का इंतजामकठिनाई से करपा रहे हैं, तो क्या ऐसे में कल्पनाकी जा सकतीहै कि कोईकिसान अपने पूरेखेत की फसलपक्षियों के खानेके लिए छोड़दे? कोल्हापुर से15 किलोमीटर दूर गडमुडशिंगीगांव के कृषिमजदूर अशोक सोनुलेने इसकी मिसालपेश की है।उन्होंने अपने 0.25 एकड़ मेंलगी ज्वार कीपूरी फसल पक्षियोंके खाने के
लिए छोड़ दी।इसी कारण उनकेखेत में बबूलके पेड़ परढेरों पक्षियों नेघोंसले बना लिएहैं। अशोक जीने देखा किपक्षियों को प्यासबुझाने के लिए कोई पोखर, तालाब यानदी नहीं हैंतो उन्होंने उनकेपानी पीने केलिए पेड़ परकई सकोरे टांगदिए। वे कहतेहैं, इन पक्षियोंको खाना-पानीऔर आश्रय की जरूरतहै। हम उन्हेंअकेले कैसे छोड़सकते हैं। हमतो मजदूरी करकेभी अपना पेटपाल सकते हैं।अशोक जी केपरिवार में 12 सदस्य हैं
और उनका परिवारअत्यंत गरीबी का सामनाकर रहा है।इसके बावजूद उन्होंनेअपनी फसल पक्षियोंके लिए छोड़कर इन मूकप्राणियों के प्रतिअपनी सहृदयता का उदाहरणपेश किया है। अशोक सोनुले और उनकेपरिवार को बड़ीमुश्किल से दोवक्त की रोटीनसीब होती है।आसपास के सभीकिसानो की ज़मीनेसूखे की वजहसे बंजर पड़ी है।पर अशोक जीके खेत मेंज्वार की फसललहलहाती है। परअशोक इनसे पैसेकमाने के बजाय, ये सारी फसलपक्षियों के चुगनेके लिये छोड़ देते हंै।उन्होंने खेत मेंबिजूका (पक्षियों को भगानेके लिए लगायाजाने वाला मानवरुपी पुतला) भीनहीं लगाया औरपक्षियों के लिएपानी का घड़ा भी हमेशा भर कररखते हंै। नैशनल क्राइम रिकार्ड्स ब्यूरो(छब्त्ठ), गृह मंत्रालय, के सर्वेक्षण द्वाराये पता चलताहै कि 2014 में5650 किसानांे ने आत्महत्याकी है। फसल का ख़राब होनाइन सभी आत्महत्याओके पीछे एकसबसे बड़ा कारणहै। आत्महत्या करनेवाले 5650 किसानांे में 2358 किसानमहाराष्ट्र राज्य के है। बेमौसम बारिश और सूखाइस आपदा कीवजह है। इसपरिस्थिति में जहाँकिसान को अपनेपरिवार के लिएदो वक्त कीरोटी जुटाना भीमुश्किल है, ऐसे में एकपरिवार अपनी पूरीफसल पक्षियों केखाने के लियेछोड़ देता है।जहाँ आमतौर परकिसान चिडियों कोअपनी फसल कादुश्मन मानते है वही अशोक अपनेखेत में आनेवालेपक्षियों को दानाखिलाने के लियेहमेशा तैयार रहतेहंै। अशोक सोनुलेऔर उनके दोनोंबेटे प्रकाश औरविलास
और उनका भाईबालू दूसरों केखेतों में मजदूरीकरते हंै, ताकिवो परिवार केसदस्यों का भरणपोषण कर सके। अशोक सोनुले जी केपरिवार के पास0.25 एकड़ बंजर जमीनहै, जिससे उन्हेंएक वक्त काखाना भी नसीबनहीं होता है।आसपास के इलाकेकी जमीन भी बंजरहै। हर सालकी तरह इससाल भी अशोकने जून केमहीने में ज्वारके बीज बोयेथे। पर हरबार की तरह, इस साल भीसुखा पड़ा, इसलिए उन्होंने ज्यादा फसलकी अपेक्षा नहींरखी थी। पूराइलाका सूखे कीचपेट में था।इसे कुदरत काकरिश्मा ही कहिएकि कुछ हीमहीनों में अशोक जी केखेत में सूखेके बावजूद ज्वारकी फसल लहलहारही थी औरकटाई के लियेतैयार थी।
अशोक के खेतमें बबूल केपेड़ पर पक्षियोंने अपना घोसलाबनाया है। अशोकइस फसल कोकाटने ही लगेथे कि खेतके बीचो बीचलगे एक बबूल के पेड़की वजह सेउन्हें काम करनेमें दिक्कत होनेलगी। उन्होंने बबूलके पेड़ कोकाटने की ठानही ली थी, पर उन्होंने देखाकि आसपास की जमीन बंजर होनेके कारण पंछीउनके खेत मेंलगे ज्वार परही निर्भर थे।इसलिये वो अपनाघोसला उस बबूलके पेड़ परबनाते थे। येदेख अशोक जी
का मन बदलगया और उन्होंनेउस पेड़ कोनहीं काटा। उन्हेंये एहसास हुआकि आसपास केखेत बंजर पड़ेहंै पर शायदइन पक्षियों केलिये ही उनका खेत हराभरा है। उन्होंनेचिडियों के लिएखेत में पानीके घड़े रखेहै।
इन पक्षीयों का चहचहानाअशोक जी केचेहरे पर मुस्कानले आता है।वे मानते हैकि उनके खेतकी सारी फसलपर सिर्फ इनचिडियों का ही अधिकार है। सूखेकी वजह सेआसपास कहीं पानीभी नहीं है, इसलिये उनका पुरापरिवार पानी केघड़े खेत मेंऔर पेड़ पररख देता हैताकि चिड़ियों को पानी कीभी कमी नहो। अशोक जीकहते है “इनपक्षियों को भीतो खाना, पानीऔर रहने केलिये जगह कीजरुरत है। तोफिर मैं क्योंउन्हें भूखा प्यासा छोड़ सकताहूँ ।