Sunday, October 13, 2013

Wife carrying disabled Husband on her back.







Jesse Cottle joined the Marine Corps in August 2003, and lost his legs in Afghanistan while on patrol in 2009. He met his future bride, Kelly, while he was recovering from his wounds during a swim meet in San Diego. Kelly was a swimmer for Boise State, and she says Jesse was very different, and not just because of his legs, but just because of who he was. They got married last year and live in San Diego. They were visiting Kelly’s family back in Idaho and as they took family portraits, the photographer suggested a photo in the water. Kelly told Jesse to pop off your legs so she could take him in the water. She said it was something they often do, and the photog took a picture of Kelly carrying her husband. Jesse says the supportive messages they’ve been getting have been humbling.


Saturday, October 12, 2013

गणितज्ञ, तुलछाराम जाखड़ का गणित का ज्ञान देवीय चमत्कार है.


गाँव में गणितज्ञ,  तुलछाराम जाखड़ का गणित का ज्ञान देवीय चमत्कार है.  आपने इन दिनों गूगल बॉय की कहानी खूब पढ़ी और देखी होगी. सारे चेनल उसे दिखा रहे हैं. लेकिन मेड़ता क्षेत्र के गाँव में रहने वाले चौथी पास किसान तुलछाराम जाखड़ का गणित ज्ञान देखकर हेरान होने के सिवा कोई चारा नहीं रहता है. आप कहिये कि 865 का दस तक पहाड़ा बोलना(मल्टीप्लाई करना) है, वे बोल देंगे. ऐसे कोई भी संख्या जो एक लाख तक है, आप बोलेंगे और तुलछाराम जी उसकी दस तक की गिनती फ्लोव में बोल देंगे. आप लाखों की संख्या बोलते रहिये, वे जोड़ देंगे. आप किसी भी लंबी संख्या का वर्गमूल(स्क्वायर रूट) पूछिए, वे बता देंगे. बस आप आँखें फाड़ फाड़ कर उनकी तरफ देखते रहिये.  कई बार उनके बारे में अखबार में पढ़ा था, कई बार उनसे मुलाक़ात भी होती रहती है पर उनसे तसल्ली से रूबरू नहीं हो पाया था. आज उनके गाँव लाम्पोलाई में शाम को एक हथाई में बैठा था तो उनके गणित के ज्ञान की एक एक परत ऐसी खुलने लगी कि मुझे ब्रह्मगुप्त और आर्यभट्ट के फलसफे और प्रमेय याद आने लगे. आज वार्तालाप बीच में ही छोड़ना पड़ा. समय का अभाव था. उन्हें फिर आने का वादा कर आ गया.  मैंने चलते चलते जाखड़ साहब से पूछा कि आप आगे क्यों नहीं पढ़े तो एक मार्मिक कहानी बता गये. बोले कि मेरे दादा को उनके गुरु ने बताया कि इस बच्चे के सिर पर अगर हल्की चोट भी लग गई तो यह खत्म हो जायेगा. दादा को पता था कि उन दिनों स्कूल में बच्चों की पिटाई आम बात थी. बस स्कूल छुडवा दी. लेकिन दिमाग की कसरत घर पर ही चालू रही. दिमाग आज भी उसी गति से गणनाएं कर रहा है. अगर स्कूल में पढ़ाई चालू रहती तो पता नहीं भारत को कैसा वैज्ञानिक मिलता. भारत का सौभाग्य कहाँ !  कई बार स्थानीय अखबारों ने उनकी कहानी छापी है पर अभी तक वे देश दुनिया की ख़बरों में नहीं आये हैं. बोलते मारवाड़ी में है, पर संख्याएँ उनके लिए खेल हो गई हैं. जिस प्रकार मेरे सामने गुणा और जोड़ कर रहे थे, मेरी तो आगे सवाल करने की हिम्मत ही नहीं पड़ी.  आपको तसल्ली करनी हो तो लाम्पोलाई गाँव (राजस्थान के एकदम बीच में ) जाकर 65 वर्ष के तुलछाराम जी से जरूर मिलिएगा. इस क्षेत्र में लोग उनको कंप्यूटर के नाम से जानते हैं !  'अभिनव राजस्थान अभियान'-  जयपुर से गाँव तक - अच्छाई की मार्केटिंग. हम कोशिश करेंगे कि तुलछाराम जी की चमत्कारिक कहानी दुनियाभर में पहुंचे.


गाँव में गणितज्ञ, तुलछाराम जाखड़ का गणित का ज्ञान देवीय चमत्कार है. आपने इन दिनों गूगल बॉय की कहानी खूब पढ़ी और देखी होगी. सारे चेनल उसे दिखा रहे हैं. लेकिन मेड़ता क्षेत्र के गाँव में रहने वाले चौथी पास किसान तुलछाराम जाखड़ का गणित ज्ञान देखकर हेरान होने के सिवा कोई चारा नहीं रहता है. आप कहिये कि 865 का दस तक पहाड़ा बोलना(मल्टीप्लाई करना) है, वे बोल देंगे. ऐसे कोई भी संख्या जो एक लाख तक है, आप बोलेंगे और तुलछाराम जी उसकी दस तक की गिनती फ्लोव में बोल देंगे. आप लाखों की संख्या बोलते रहिये, वे जोड़ देंगे. आप किसी भी लंबी संख्या का वर्गमूल(स्क्वायर रूट) पूछिए, वे बता देंगे. बस आप आँखें फाड़ फाड़ कर उनकी तरफ देखते रहिये. कई बार उनके बारे में अखबार में पढ़ा था, कई बार उनसे मुलाक़ात भी होती रहती है पर उनसे तसल्ली से रूबरू नहीं हो पाया था. आज उनके गाँव लाम्पोलाई में शाम को एक हथाई में बैठा था तो उनके गणित के ज्ञान की एक एक परत ऐसी खुलने लगी कि मुझे ब्रह्मगुप्त और आर्यभट्ट के फलसफे और प्रमेय याद आने लगे. आज वार्तालाप बीच में ही छोड़ना पड़ा. समय का अभाव था. उन्हें फिर आने का वादा कर आ गया. मैंने चलते चलते जाखड़ साहब से पूछा कि आप आगे क्यों नहीं पढ़े तो एक मार्मिक कहानी बता गये. बोले कि मेरे दादा को उनके गुरु ने बताया कि इस बच्चे के सिर पर अगर हल्की चोट भी लग गई तो यह खत्म हो जायेगा. दादा को पता था कि उन दिनों स्कूल में बच्चों की पिटाई आम बात थी. बस स्कूल छुडवा दी. लेकिन दिमाग की कसरत घर पर ही चालू रही. दिमाग आज भी उसी गति से गणनाएं कर रहा है. अगर स्कूल में पढ़ाई चालू रहती तो पता नहीं भारत को कैसा वैज्ञानिक मिलता. भारत का सौभाग्य कहाँ ! कई बार स्थानीय अखबारों ने उनकी कहानी छापी है पर अभी तक वे देश दुनिया की ख़बरों में नहीं आये हैं. बोलते मारवाड़ी में है, पर संख्याएँ उनके लिए खेल हो गई हैं. जिस प्रकार मेरे सामने गुणा और जोड़ कर रहे थे, मेरी तो आगे सवाल करने की हिम्मत ही नहीं पड़ी. आपको तसल्ली करनी हो तो लाम्पोलाई गाँव (राजस्थान के एकदम बीच में ) जाकर 65 वर्ष के तुलछाराम जी से जरूर मिलिएगा. इस क्षेत्र में लोग उनको कंप्यूटर के नाम से जानते हैं ! 'अभिनव राजस्थान अभियान'- जयपुर से गाँव तक - अच्छाई की मार्केटिंग. हम कोशिश करेंगे कि तुलछाराम जी की चमत्कारिक कहानी दुनियाभर में पहुंचे.

Thursday, October 3, 2013

अमृतसर जाएं तो इस बीस फुट के विरासती मंजे पर जरूर बैठें

अमृतसर.  जूट की रस्सी से बुनी इस चारपाई की लंबाई बीस फुट और चौड़ाई सोलह फुट है। इस पर पचास लोग आराम से बैठ जाते हैं। प्रजापत कुम्हार बिरादरी ने इस अनमोल धरोहर को सात दशकों से सहेज कर रखा है। इसे आप शहर के बीचोबीच स्थित पुराने टेलीफोन एक्सचेंज के पास रूढ़ सिंह की हवेली के सामने देख सकते हैं।  जगवीर सिंह कहते हैं कि यह विशाल चारपाई हमारे बुजुर्गों की निशानी है। इस पर बैठ कर ताश खेलने, शराब, तंबाकू या बीड़ी-सिगरेट पीने की सख्त मनाही है।

Monday, September 9, 2013

चन्द्र शेखर लोहुमी : उत्तराखण्ड के महान वैज्ञानिक

चन्द्र शेखर लोहुमी (1904-1984)
cs_lohimi
स्व० चन्द्र शेखर लोहुमी जी
अल्मोड़ा जिले के सतराली गांव के एक गरीब किसान श्री बचीराम लोहनी के घर वर्ष १९०४ में जन्मे चन्द्र शेखर लोहुमी जी ने मात्र हाईस्कूल तक की शिक्षा प्राप्त की थी, इन्होंने अपनी असाधारण प्रतिभा से वह कर दिखाया, जो साधन संपन्न वैज्ञानिकों के लिये एक चुनौती बन गया।
लोहुमी जी ने १९३२ में प्रथम श्रेणी में मिडिल की परीक्षा पास की और उसके बाद अध्यापन को अपना पेशा बनाया। लोहुमी जी ने पढ़ाई की एक सुगम विधि भी तैयार की और उसी विधि से छात्रों को पढ़ाने लगे। इससे प्रभावित होकर तत्कालीन शिक्षा मंत्री (१९३२) कमलापति त्रिपाठी जी ने इन्हें ५०० रु० का अनुदान दिया और १९६४ में इन्हें राष्ट्रपति के हाथों इन्हें राष्ट्रपति पुरस्कार भी मिला।
१९६७ में इन्होंने लेन्टाना (कुरी घास) को नष्ट करने वाले कीट की खोज कर तहलका मचा दिया। १९७८ में जैव विज्ञान चयनिका के अंक १ में इन्होंने लिखा था कि “१८०७ में कुछ पुष्प प्रेमी अंग्रेज अपने साथ मैक्सिको से एक फूलों की झाड़ी साथ लाये थे। इसके कुछ पौधे नैनीताल और हल्द्वानी के पास कंकर वाली कोठी में लगाये गये थे। शनैः-शनैः यह झाड़ी पूरे भाबर क्षेत्र और पहाड़ों में भी फैल गई। आज तो स्थिति यह है कि लेन्टाना उत्तराखण्ड के घाटी इलाकों में भी फैल गया है। हजारों एकड़ जमीन इस घास के प्रभाव में आने के कारण कृ्षि विहीन हो गई है” लेन्टाना बग के कीट को खोजने के लिये मास्टर जी ने ४ साल तक अथक प्रयास किया, इसके लिये उन्होंने २४ किस्म के अनाज, ६ फूलों, १८ फलों, २३ तरकारियों, २४ झाड़ियों, ३७ वन वृक्षों और २५ जलीय पौधों पर परीक्षण किया। इनके इस शोध को विश्व भर के सभी कीट विग्यानियों और वनस्पति शाष्त्रियों ने एकमत से स्वीकार किया। इस जैवकीय परीक्षण के लिए आई०सी०ए०आर० (इण्डियन काउन्सिल आफ एग्रीकल्चर रिसर्च) ने इन्हें १५००० का किदवई पुरस्कार देकर सम्मानित किया। प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी ने ५००० और पंतनगर वि०वि० ने १८००० का नकद पारितोषिक दिया। पन्तनगर वि०वि० ने पांच साल तक १०० रुपये की मासिक सहायता भी दी और कुमाऊं वि०वि० ने भी १००० का पारितोषिक दिया।
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लेन्टाना की झाड़ी और फूल
लेन्टाना को जैविक ढंग से नष्ट करने की जानकारी देने के लिये इन्हें लखनऊ और दिल्ली से टी०वी० और रेडियो पर वार्ता के लिये बुलाया गया। पन्तनगर, कुमाऊ, जे एन यू, पूसा इंस्टीट्यूट, विवेकानन्द अनुसंधान संस्थान, अल्मोड़ा ने भी इन्हें परीक्षण से प्राप्त उपलब्धियों की जानकारी लेने के लिये आमंत्रित किया। १९७४ में बेसिक शिक्षा परिषद ने इन्हें परिषद का सदस्य मनोनीत किया। १९७६ में जिलाधिकारी नैनीताल और अल्मोड़ा ने इनका नाम पद्मश्री पुरस्कार के लिये नामित किया, लेकिन यथासमय संस्तुति न पहुंचने के कारण वह इस पुरस्कार से वंचित रह गये।
लोहुमी जी ने सुर और लोनिया व ईटवा (ईट-पत्थर) पर १९७५ से अन्वेषण कार्य प्रारम्भ किया, इस विषय पर आपका विस्तृत लेख ८ अक्टूबर, १९७८ के साप्ताहिक हिन्दुस्तान में प्रकाशित हुआ। मक्के की डंठल की राख पर आपने २ साल तक शोध किया, उस पर योजना भेजी, योजना विज्ञान और प्रोद्योगिकी विभाग, उ०प्र० से स्वीकृत हो गई, यह योजना अभी पंतनगर वि०वि० में चलाई जा रही है। ११ अगस्त, १९७६ को सप्रू हाउस, दिल्ली में भारतवर्ष के वैज्ञानिकों का सम्मेलन हुआ। सम्मेलन में “जैवकीय विधि से नियंत्रण तथा विज्ञान कैसे लिखा जाय” विषय पर इन्होंने वैज्ञानिकों के सामने अपने विचार रखे। सभी ने इनकी मुक्त कंठ से सराहना की। तिपतिया घास और तुन की लकड़ी पर भी इनके प्रयोग सफल रहे। मधुमक्खी पालन पर भी आपने अन्वेषण किया।
लेन्टाना बग पर आपने एक पुस्तक लिखी है, जो इण्डियन काउन्सिल आफ एग्रीकल्चर रिसर्च, दिल्ली द्वारा प्रकाशित की गई है। यह पुस्तक देश और विदेश की भाषाओं में भी प्रकाशित हुई है। लोहुमी जी जैसे विज्ञान और अंग्रेजी से अनभिज्ञ व्यक्ति ने वह कर दिखाया, जो साधन संपन्न वैज्ञानिक नहीं कर सके।
(स्व० लोहुमी जी का दुर्लभ चित्र उनके भतीजे श्री मुकेश लोहनी जी ने उपलब्ध कराया है, इस हेतु मेरा पहाड़ उनका हृदय से आभार प्रकट करता है।)


Read more: http://www.merapahad.com/chandra-shekhar-lohumi-great-scienctist-from-uttarakhand/#ixzz2eOmgg3Ne

Wednesday, September 4, 2013

Ingenuity on a Shoe String

White sticks, dark glasses, a guide dog if they’re lucky – the vision impaired have made do with crude tools to navigate the external world for decades. They’ve coped with danger and inconvenience, frustration and helplessness, and reconciled to a life of dependence. Now, something as routine as a shoe holds out the promise of safety, confidence and independence for millions of people.

The Challenge

With an engineering degree and a passion for tinkering with novel interfaces – and systems that enable more natural forms of interaction that just keyboard and mouse – IT engineer Anirudh Sharma decided to turn his attention to finding a tech solution to the navigation challenges of the visually impaired. But he was clear he didn’t want to rely on their sense of hearing, which is what conventional aids often do. ‘I wanted a more intuitive design involving the sense of touch,’ he says. To understand the challenges of navigating a world without vision, Anirudh studied the commuting patterns of two visually impaired Bangalore businessmen, Chandrashekhar Raju and Santosh Kejriwal.

The Idea

Le Chal, an ingenious solution that ticks all the boxes – scalable, effective and cost-effective. The genius is in the simplicity of the idea – to get ‘Haptic’ feedback (relating to the sense of touch) from a user’s shoes. The user spells out their destination on a GPS-based phone that used a specially-designed app (any Android-based phone is fine); a combination of three ubiquitous technologies – Bluetooth, Google Maps and GPS do the rest. Once the GPS establishes the user’s location, Google Maps comes into play and finds directions for the destination. Bluetooth is used to establish ‘communication’ between the phone and shoes, and the user is on his way – vibrators on different sides of the shoes vibrate, indicating whether you need to go left, right or straight ahead.
There was another challenge – Anirudh wasn’t an expert at making shoes; he also didn’t want to limit production to a particular brand or company. His design, therefore, needed to be compatible with generic shoes. The ingenuity of his solution is that it involves installing a circuit board in the heel and vibrators on each side of a shoe, and can be done on any existing pair, at a nominal cost of approx Rs 2000. It’s waterproof, and a proximity sensor in the front of the shoe offers an added bonus: alerting the user to obstacles up to 10 ft away.

The Innovator

A 24-year-old Bangalore boy who till recently worked at HP Labs, Anirudh studied IT Engineering and loved college because it brought him into contact with others equally passionate about  design, tech and startups. Recently he, and like-minded innovator Krispian Lawrence, an electronics engineer from the University of Michigan, set up Ducere Technologies, a startup based in Hyderabad that explores their shared passion for design, products and systems. ‘We aren’t in the business of making thousand-dollar shoes – that’s not what we do,’ he says. ‘We don’t want it to cost more than a good pair of shoes, for the idea is to maximise its reach among the millions who actually need it.

The Impact

He wasn’t sure Le Chal was a good idea till he built an initial prototype and showed it to people around him, which triggered their interest. He needn’t have doubted himself – the Indian edition of MIT’s magazineTechnology Review recently named him Innovator of the Year under 35 for 2012; the award recognises those innovators whose work is likely to have the highest impact locally and globally. The prototype for Le Chal has gone through various iterations as tests progress, with over 25 visually-impaired users part of the testing process; the final goal of freezing tech specs and initiating manufacturing is now much closer.

The Way Forward

He’s hoping to take a sabbatical once Le Chal’s tech specs are frozen and manufacturing initiated, and head to MIT for an interdisciplinary course on Media Technologies. Long-term though, he intends for his research focus to stay the same: novel new media systems, prototyping and computer vision, though fields to which it is applied could vary from assistive technologies to sports to virtual reality.

Thursday, August 29, 2013

लकडी के टुकडो से लिखी श्रीमद्भागवत लिखी

फर्नीचर बनाने के बाद उससे बची लकडी के टुकडो से श्रीमद्भागवत गीता को लिखने का काम कानपुर जरौली निवासी संदीप सोनी ने किया।  इन्होने आईटीआई से कारपेँटर का डिप्लोमा किया है| लकडी के अक्षरो से लिखी गई गीता की ऊँचाई 12 इंच और चौडाई 24 इंच है, तीन साल की मेहनत के बाद संदीप ने प्लाई की 32 शीटो पर सागौन की लकडी के अक्षरो से गीता के 18 अध्याय लिखे जिसके प्रत्येक अक्षरो की मोटाई 6 मि॰मी॰ और ऊंचाई 10 मि॰मी॰ है गीता के 706 श्लोक लिख संदीप ने अपनी रचनात्मकता का प्रदर्शन किया...। 15 जून 2010 से इन्होने जब शुरूआत की तो मोहल्ले वालो और रिश्तेदारो ने इनका मजाक उडाया पर माँ के प्रोत्साहन और इनकी मेहनत ने कर दिखाया..। और 25 अगस्त 2013 को इन्होने श्रीमद् भागवत को पूरा किया...॥

Sunday, August 18, 2013

A CHINESE ADVICE TO 50-YEAR OLD & OLDER

Spend the money that should be spent, enjoy what should be enjoyed, donate what you are able to donate,
but don't leave all to your children or grandchildren,
for you don't want them to become parasites who are waiting for the day you will die!!

Don't worry about what will happen after we are gone, because when we return to dust, we will feel nothing about praises or criticisms.
The time to enjoy the worldly life and your hard earned wealth will be over!

Don't worry too much about your children, for children will have their own destiny and should find their own way.
Don't be your children's slave. Care for them, love them, give them gifts but also enjoy your money while you can.
Life should have more to it than working from the cradle to the grave!!

Don't expect too much from your children. Caring children, though caring, would be too busy with their jobs and commitments to render much help.
Uncaring children may fight over your assets even when you are still alive, and wish for your early demise so they can inherit your properties and wealth. Your children take for granted that they are rightful heirs to your wealth;
but that you have no claims to their money.

50-year old like you, don't trade in your health for wealth by working yourself to an early grave anymore...
Because your money may not be able to buy your health...

When to stop making money, and how much is enough (hundred thousands, million, ten million)?

Out of thousand hectares of good farm land, you can consume only three quarts (of rice) daily;
out of a thousand mansions, you only need eight square meters of space to rest at night.
So, as long as you have enough food and enough money to spend, 
that is good enough.
You should live happily.
Every family has its own problems.
Just do not compare with others for fame and social status and see whose children are doing better, etc.,
but challenge others for happiness, health, enjoyment, quality of life and longevity...
Don't worry about things that you can't change because it doesn't help and it may spoil your health.
You have to create your own well-being and find your own place of happiness.
As long as you are in good mood and good health, think about happy things, do happy things daily and have fun in doing, then you will pass your time happily every day.
One day passes without happiness, you will lose one day.
One day passes with happiness, and then you gain one day.


In good spirit, sickness will cure; in a happy spirit, sickness will cure faster;
in high and happy spirits; sickness will never come.

With good mood, suitable amount of exercise, always in the sun, variety of foods, reasonable amount of vitamin and mineral intake,
hopefully you will live another 20 or 30 years of healthy life of pleasure.

Above all, learn to cherish the goodness around...
 and FRIENDS... They all make you feel young and "wanted"... without them you will surely  feel lost!!

General Knowledege

SATYAM "13-year-old son of a farmer cracks IIT, now aims to be an IAS officer"

13-year-old son of a farmer cracks IIT, now aims to be an IAS officer
Satyam was home-schooled till standard 8 as his family didn't have the necessary financial means to send him to a school.

Bhojpur: Satyam, the 13-year-old son of a farmer in Bihar, is the youngest to crack the IIT entrance exam. He now aspires to be an IAS officer. He secured an all India rank of 679 out of 1,50,000 who had taken the IIT-JEE exam.
"I'm very happy that I'm the youngest IITian and I broke the record of one who had already been the youngest IITians. So I am feeling proud that I'm the youngest IITian of the country," said Satyam.

Born to farmer parents, it has not been an entirely easy ride for Satyam. But notwithstanding the obstacles in life, Satyam, qualified and cleared IIT-JEE exam twice. He had taken the exam first when he was 12-year-old after getting special permission from CBSE but he took the exam again as he was not happy with his rank.

He grew up in a humble background but achieved what what most students can't dream of attaining ever. Cracking IIT-JEE entrance exam at the age of 13 is only the first milestone out of many milestones he wishes to achieve in his life. He aspires to become an aeronautical engineer by the age of 20 and working for NASA is his next target.
He was home-schooled till standard 8 as his family didn't have the necessary financial means to send him to a school and the government institution in his village lacked basic teaching facilities. The CBSE granted him special permission to take the Rajasthan Board Exam and the Resonance Institute in Kota gave him free admission to prepare for IIT exams.
"I feel proud that my son cracked IIT at the age of 13. He also made his village proud," said his father.
Satyam now has his eyes firmly set on his goals. After completing B-Tech in computer science from IIT, he wants to launch a social media platform and then take the UPSC exam to become an IAS officer.

"After completing my B-tech from IIT, I'll be around 17 years. So in the break of 17 to 21 years, I'll be preparing for IAS. After completing 21 years, I'll be giving IAS exams," Satyam said.
Meanwhile, Satyam's family is hoping for a better future for themselves as he has made a giant progress in life.

Short Symbols


 
HOW TO MAKE SYMBOLS WITH KEYBOARD  Alt + 0153..... ™... trademark symbol Alt + 0169.... ©.... copyright symbol Alt + 0174..... ®....registered trademark symbol Alt + 0176 ...°......degre­e symbol Alt + 0177 ...±....plus-or­-minus sign Alt + 0182 ...¶.....paragraph mark Alt + 0190 ...¾....fractio­n, three-fourths Alt + 0215 ....×.....multi­plication sign Alt + 0162...¢....the cent sign Alt + 0161.....¡..... .upside down exclamation point Alt + 0191.....¿..... ­upside down question mark Alt + 1...........smiley face Alt + 2 ......☻.....bla­ck smiley face Alt + 15.....☼.....su­n Alt + 12......♀.....f emale sign Alt + 11.....♂......m­ale sign Alt + 6.......♠.....s­pade Alt + 5.......♣...... ­Club Alt + 3............. ­Heart Alt + 4.......♦...... ­Diamond Alt + 13......♪.....e­ighth note Alt + 14......♫...... ­beamed eighth note Alt + 8721.... ∑.... N-ary summation (auto sum) Alt + 251.....√.....s­quare root check mark Alt + 8236.....∞..... ­infinity Alt + 24.......↑..... ­up arrow Alt + 25......↓...... ­down arrow Alt + 26.....→.....ri­ght arrow Alt + 27......←.....l­eft arrow Alt + 18.....↕......u­p/down arrow Alt + 29......↔... left right arrow  Please share it might help others..








HOW TO MAKE SYMBOLS WITH KEYBOARD

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Alt + 0191.....¿..... ­upside down question mark
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Saturday, August 17, 2013

विकलांगता पर हौसले की जीत, पांव से ट्रेक्टर चलाते हैं जगतार


physically disability

किसी ने सही कहा है कि युद्ध में वही जीतता है, जो अंत तक उम्मीद बनाए रखता है। कभी सब कुछ खत्म नहीं होता। वह चाहे जीवन रूपी समर ही क्यों न हो। इसे सही मायनों में चरितार्थ किया है 43 वर्षीय जगतार सिंह ने।
हल्दरी गांव के इस किसान को पैरों की सहायता से ही खेती करते, उन्हीं से कॉपी पर लिखता देख हर कोई दंग रह जाता है। जगतार बताते हैं कि 24 जून 1991 का काला दिन उसे आज भी याद है जब खेती करते वक्त ट्यूबवेल से करंट लग गया। चंडीगढ़ पीजीआइ में कई दिन जिंदगी व मौत के बीच जूझने के बाद डॉक्टरों को उसके दोनों बाजू काटने पड़े। इस हादसे के बाद पूरा परिवार सदमे में आ गया था।
करीब दो साल बाद उसने होश संभाला और इस मुश्किल घड़ी में भी जीवन जीने का रास्ता निकाला। धीरे-धीरे पैरों से ट्रैक्टर चलाने का अभ्यास शुरू किया। पैर से ट्रैक्टर का स्टेयरिंग संभालने, गियर लगाने और रेस नियंत्रित करने में निपुणता हासिल करने से उसे एक नई प्रेरणा मिली। अब वह सामान्य किसान की तरह खेतों में ट्रैक्टर चलाने के साथ ही अन्य कृषि कार्य बखूबी कर रहा है। इतना ही नहीं वह अपने पैरों से ही लिखने का काम भी कर लेता है।

कैलेंडर की कहानी

डॉ. हरिकृष्ण देवसरे

प्राचीन यूनानी सभ्यता में 'कैंलेंड्‍स' का अर्थ था - 'चिल्लाना'। उन दिनों एक आदमी मुनादी पीटकर बताया करता था कि कल कौन सी तिथि, त्योहार, व्रत आदि होगा। नील नदी में बाढ़ आएगी या वर्षा होगी। इस 'चिल्लाने वाले' के नाम पर ही - दैट हू कैलेंड्‍स इज 'कैलेंडर' शब्द बना। वैसे लैटिन भाषा में 'कैलेंड्‍स' का अर्थ हिसाब-किताब करने का दिन माना गया। उसी आधार पर दिनों, महीनों और वर्षों का हिसाब करने को 'कैलेंडर' कहा गया है।

एक समय था जब कैलेंडर नहीं थे। लोग अनुभव के आधार पर काम करते थे। उनका यह अनुभव प्राकृतिक कार्यों के बारे में था। वर्षा, सर्दी, गर्मी, पतझड़ आदि ही अलग-अलग काम करने के संकेत होते। 

धार्मिक, सा‍माजिक उत्सव और खेती के काम भी इन्हीं पर आधारित थे। समय का सही बँटवारा करना मुश्किल हो जाता। लोगों ने अनुभव किया कि दिन-रात का बँटवारा कभी गड़बड़ नहीं होता। इसी तरह रात में चंद्रमा दिखने का भी एक क्रम है। 

चंद्रमा दिखने का यह क्रम, जिन्हें चंद्रमा की कलाएँ भी कहा गया, निश्चित समय के बाद अवश्य जारी रहता। इस तरह दिन-रात और चंद्रमा की कलाओं के आधार पर दिनों की गिनती की गई। फिर इस अवधि को नाम दिया गया। तारे और चंद्रमा केवल सूर्यास्त के बा‍द दिखते और सूर्यास्त होने पर अँधेरा हो जाता, इसलिए इस अवधि को 'रात' कहा गया। 

सूर्योदय होने से लेकर सूर्यास्त तक की अवधि को 'दिन' का नाम दिया गया। यह भी अनुभव किया गया कि मौसम सूर्य के कारण बदलते हैं। चंद्रमा का चक्र नए चाँद से नए चाँद तक माना गया। सूर्य का चक्र एक मौसम से दूसरे मौसम तक माना गया।

चंद्रमा का चक्र साढ़े उन्तीस दिन में पूरा होता है। उसे 'महीना' कहा गया। सूर्य के चारों मौसम को मिलाकर 'वर्ष' कहा गया। फिर गणना के लिए 'कैलेंडर' या 'पंचांग' का जन्म हुआ। अलग-अलग देशों ने अपने-अपने ढंग से कैलेंडर बनाए क्योंकि एक ही समय में पृथ्‍वी के विभिन्न भागों में दिन-रात और मौसमों में भिन्नता होती है। लोगों का सामाजिक जीवन, खेती, व्यापार आदि इन बातों से विशेष प्रभावित होता था इसलिए हर देश ने अपनी सुविधा के अनुसार कैलेंडर बनाए।

वर्ष की शुरुआत कैसे करें इसके लिए किसी महत्वपूर्ण घटना को आधार माना गया। कहीं किसी राजा की गद्‍दी पर बैठने की घटना से (विक्रम संभव) गिनती शुरू तो कहीं शासकों के नाम से जैसे रोम, यूनान, शक आदि। बाद में तो ईसा के जन्म (ईस्वी सन्) या हजरत मोहम्मद साहब द्वारा मक्का छोड़कर जाने की घटनाओं से कैलेंडर बने और प्रचलित हुए।

रोम का सबसे पुराना कैलेंडर वहाँ के राजा न्यूमा पोंपिलियस के समय का माना जाता है। यह राजा ईसा पूर्व सातवीं शताब्दी में था। आज विश्वभर में जो कैलेंडर प्रयोग में लाया जाता है। उसका आधार रोमन सम्राट जूलियस सीजर का ईसा पूर्व पहली शताब्दी में बनाया कैलेंडर ही है। जूलियस सीजर ने कैलेंडर को सही बनाने में यूनानी ज्योतिषी सोसिजिनीस की सहायता ली थी। इस नए कैलेंडर की शुरुआत जनवरी से मानी गई है। इसे ईसा के जन्म से छियालीस वर्ष पूर्व लागू किया गया था। जूलियस सीजर के कैलेंडर को ईसाई धर्म मानने वाले सभी देशों ने स्वीकार किया। उन्होंने वर्षों की गिनती ईसा के जन्म से की। 

जन्म के पूर्व के वर्ष बी.सी. (बिफोर क्राइस्ट) कहलाए और (बाद के) ए.डी. (आफ्टर डेथ) जन्म पूर्व के वर्षों की गिनती पीछे को आती है, जन्म के बाद के वर्षों की गिनती आगे को बढ़ती है। सौ वर्षों की एक शताब्दी होती है। 

संसार के सभी देश अब एक समय मानते हैं और आपस में तालमेल बिठाकर घड़ियों को शुद्ध रखते हैं। आज समय की पाबंदी बड़ी महत्वपूर्ण हो गई है और लोग उसका मूल्य समझने लगे हैं। 

Friday, August 16, 2013

Engineers without degrees


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UNIVERSAL LAWS



  1. Law of Mechanical Repair - After your hands become coated with grease, your nose will begin to itch and you'll have to pee.
  2. Law of Gravity - Any tool, nut, bolt, screw, when dropped, will roll to the least accessible corner.
  3. Law of Probability -The probability of being watched is directly proportional to the stupidity of your act.
  4. Law of Random Numbers - If you dial a wrong number, you never get a busy signal and someone always answers.
  5. Law of the Alibi - If you tell the boss you were late for work because you had a flat tire, the very next morning you will have a flat tire.
  6. Variation Law - If you change lines (or traffic lanes), the one you were in will always move faster than the one you are in now (works every time).
  7. Law of the Bath - When the body is fully immersed in  water, the telephone rings.
  8. Law of Close Encounters -The probability of meeting  someone you know increases dramatically when you are with  someone you don't want to be seen with.
  9. Law of the Result - When you try to prove to someone  that a machine won't work, it will.
  10. Law of Biomechanics - The severity of the itch is  inversely proportional to the reach.
  11. Law of the Theater - At any event, the people whose  seats are furthest from the aisle arrive last.
  12. The Starbucks Law - As soon as you sit down to a cup  of hot coffee, your boss will ask you to do something which will last  until the coffee is cold.
  13. Murphy's Law of Lockers - If there are only two people  in a locker room, they will have adjacent lockers.
  14. Law of Physical Surfaces - The chances of an  open-faced jelly sandwich landing face down on a floor covering are directly correlated to the newness and cost of the carpet/rug.
  15. Law of Logical Argument - Anything is possible if you  don't know what you are talking about.
  16. Brown's Law of Physical Appearance - If the clothes fit, they're ugly.
  17. Oliver's Law of Public Speaking - A closed mouth gathers no feet.
  18. Wilson's Law of Commercial Marketing Strategy  As  soon as you find a product that you really like, they stop making it.
  19. Doctors' Law - If you don't feel well, make an  appointment to go to the doctor, by the time you get there you'll feel  better. Don't make an appointment and you'll stay sick.

PULKIT GAUR..... The Robotic Man of India


"Ek Sachcha Bhartiya .........................."  रोबोट के लिए गूगल का ऑफर ठुकराया.....................तय किया, अमेरिका या किसी अन्य देश के लिए काम नहीं करना। अपने देश के लिए काम करके इसे दुनिया में नई पहचान देनी है।...................................  पुलकित गौड़ उम्र: 32 साल स्कूलिंग : केंद्रीय विद्यालय जोधपुर एमबीएम इंजीनियरिंग कॉलेज से मैकेनिकल ब्रांच में बीटेक डिग्री प्रोफेशन : ग्रिडबोट्स डॉट कंपनी के संस्थापक उपलब्धि : रोबोटिक्स का प्रमोशन। पिता : दिनेश कुमार गौड़, आईबी से रिटायर एडिशनल डायरेक्टर मां : आंगनबाड़ी महिला एवं बाल विकास में सुपरवाइजर।   रोबोट बनाने का जुनून ही था कि कैलिफोर्निया की मेडिटैब कंपनी की 16 लाख रुपए सालाना की नौकरी छोड़ी। रोबोटिक्स प्रोजेक्ट्स पर खुद के ब्लॉग लिखने पर 2006 में गूगल कंपनी ने 45 लाख सालाना का ऑफर दिया। तय किया, अमेरिका या किसी अन्य देश के लिए काम नहीं करना। अपने देश के लिए काम करके इसे दुनिया में नई पहचान देनी है। 2007 में ग्रिडबोट्स डॉट कॉम कंपनी खोली। 2008 में टंकी साफ करने वाला रोबोट बनाया। यह रोबोट टंकी को खाली किए बिना ही उसकी गंदगी को निकाल देता है। यह रोबोट बनाने के लिए मैसाच्यूसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एमआईटी) ने उन्हें इंडिया के टॉप-18 इनोवेटर में शामिल किया। हाल ही में उनकी कंपनी ने भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर के लिए रोबोट तैयार किया है। न्यूक्लियर प्लांट्स के लिए बनाया गया यह रोबोट 100 मीटर की दूरी से मेटेरियल को स्टील के डिब्बों में बंद कर देता है।










पुलकित गौड़
उम्र: 32 साल
स्कूलिंग : केंद्रीय विद्यालय जोधपुर
एमबीएम इंजीनियरिंग कॉलेज से मैकेनिकल ब्रांच में बीटेक डिग्री
प्रोफेशन : ग्रिडबोट्स डॉट कंपनी के संस्थापक
उपलब्धि : रोबोटिक्स का प्रमोशन।
पिता : दिनेश कुमार गौड़, आईबी से रिटायर एडिशनल डायरेक्टर
मां : आंगनबाड़ी महिला एवं बाल विकास में सुपरवाइजर।

रोबोट बनाने का जुनून ही था कि कैलिफोर्निया की मेडिटैब कंपनी की 16 लाख रुपए सालाना की नौकरी छोड़ी। रोबोटिक्स प्रोजेक्ट्स पर खुद के ब्लॉग लिखने पर 2006 में गूगल कंपनी ने 45 लाख सालाना का ऑफर दिया। तय किया, अमेरिका या किसी अन्य देश के लिए काम नहीं करना। अपने देश के लिए काम करके इसे दुनिया में नई पहचान देनी है। 2007 में ग्रिडबोट्स डॉट कॉम कंपनी खोली। 2008 में टंकी साफ करने वाला रोबोट बनाया। यह रोबोट टंकी को खाली किए बिना ही उसकी गंदगी को निकाल देता है। यह रोबोट बनाने के लिए मैसाच्यूसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एमआईटी) ने उन्हें इंडिया के टॉप-18 इनोवेटर में शामिल किया। हाल ही में उनकी कंपनी ने भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर के लिए रोबोट तैयार किया है। न्यूक्लियर प्लांट्स के लिए बनाया गया यह रोबोट 100 मीटर की दूरी से मेटेरियल को स्टील के डिब्बों में बंद कर देता है।

Friday, August 9, 2013

अन्नादुराई" ये एक ऑटोरिक्षा चालक हैं ....


अन्नादुराई" ये एक ऑटोरिक्षा चालक हैं .... ये चेन्नई मे रिक्षा चलाते हैं
इनके रिक्षा मे बैठने पर ये सेवाएँ मिलती हैं

1. निःशुक्ल मोबाइल बैटरि चार्जर
2. निःशुक्ल टीवी देखिये
... 3. निःशुक्ल WI-FI
4. निःशुक्ल पढ़ने के लिए पुस्तकें
5. ग्राहकों के लिए इनाम देने का सिस्टम
6. एक गरीब बच्चे की सहायता
7. शिक्षकों के लिए विशेष दिनों पर किराये मे छूट

और ये सब करने के बाद भी अन्नादुराई 11 KM चलने का सिर्फ 15 रुपए ही लेते हैं !

अन्नादुराई के शब्दों मे कहें तो "मेरे लिए ग्राहक की सेवा सर्वोपरि है .... पैसे मेरे लिए उतने अधिक आवश्यक नहीं हैं लेकिन मुझे खुशी तब होती है जब मेरे द्वारा दी गयी सेवा से ग्राहक कृतज्ञ और संतुष्ट होते हैं"
 —

Thursday, August 8, 2013

टेलीमार्केटिंग से बचने के तरीके...

आजकल टेलीमार्केटिंग कम्पनियों का जमाना है, रोज-ब-रोज कोई ना कोई बैंक, इंश्योरेंस, फ़ाईनेंस एजेन्सी आदि-आदि फ़ोन कर-कर के आपकी नींद खराब करते रहते हैं, ब्लडप्रेशर बढाते रहते हैं, और आप हैं कि मन-ही-मन कुढते रहते हैं, कभी-कभी फ़ोन करने वाले को गालियाँ भी निकालते हैं, लेकिन अब पेश है कुछ नये आईडिया इन टेलीमार्केटिंग कम्पनियों से प्रभावी बचाव का - इनको आजमा कर देखिये कम से कम चार तो आपको पसन्द आयेंगे ही -

  1. जैसे ही टेलीमार्केटर बोलना बन्द करे, उसे तत्काल शादी का प्रस्ताव दे दीजिये, यदि वह लड़की है तो दोबारा फ़ोन नहीं आयेगा, और यदि वह लड़का है तो शर्तिया नहीं आयेगा...
  2.  टेलीमार्केटर से कहें कि आप फ़िलहाल व्यस्त हैं, तुम्हारा फ़ोन नम्बर, पता, घर-ऑफ़िस का नम्बर दो, मैं अभी वापस कॉल करता हूँ..
  3.  उसे, उसी की कही तमाम बातों को दोहराने को कहें, कम से कम चार बार..
  4. उसे कहें कि आप लंच कर रहे हैं, कृपया होल्ड करें, फ़िर फ़ोन को प्लेट के पास रखकर ही चपर-चपर खाते जायें, जब तक कि उधर से फ़ोन ना कट जाये..
  5. उससे कहिये कि मेरी सारे हिसाब-किताब मेरा अकाऊंटेंट देखता है, लीजिये उससे बात कीजिये और अपने सबसे छोटे बच्चे को फ़ोन पकडा़ दीजिये...
  6. उससे कहिये आप ऊँचा सुनते हैं, जरा जोर से बोलिये (ऐसा कम से कम चार बार करें)..
  7. उसका पहला वाक्य सुनते ही जोर से चिल्लाईये - "अरे पोपटलाल, तुम... ! माय गॉड, कितन दिनों बाद फ़ोन किया,,,, और,,,,, और...................बहुत कुछ लगातार बोलिये... फ़िर वह कहेगा कि मैं पोपटलाल नहीं हूँ, फ़िर भी मत मानिये, कहिये "अरे मजाक छोड़ यार "....अगली बार फ़ोन आ जाये तो गारंटी...
  8. उससे कहिये कि एकदम धीरे-धीरे बोले, क्योंकि आप सब कुछ हू-ब-हू लिखना चाहते हैं, फ़िर भी यदि वह पीछा ना छोडे, तो एक बार और उसी गति से रिपीट करने को कहें....
  9. यदि ICICI से फ़ोन है तो उसे कहिये कि मेरे ऑफ़िस के नम्बर पर बात करें और उसे HSBC का नम्बर दे दें.

SPIRITUAL COW DUNG HAND MADE PAPER



INTRODUCTION

Indigenous Cow ( Desi Cow) is the revitalization of ‘ prana’ ( Life – living existence) and mother cow owns the earth. Each and every particle and droppings from mother cow are strong contributors to the existence of mankind. With this object we use the gobar ( Cow dung)of indeginous cow.
We wish to introduce ourselves as the producer of ecofreindly recyclable DIVINE hand made paper having identity by the name of " COW CHHAAP" ( meaning " impression of our mother cow " ) 
This project has been set up under the initiative of our charitable organization whose main motive is to spread eco-friendly environment and provide a source of income to the gaushala and thereby help in stopping cows being slaughtered.

SAYINGS BY OUR ANCIENT SCULPTURES ABOUT COW DUNG

The cow has been a symbol of wealth since ancient Vedic times.
In the scriptures, we find the sage Vyasa saying that cows are the most efficacious cleansers of all. As per Rig Veda 10.87.16: “ya paurueyea kraviā samakte yo aśveyena paśunāyātudhāna,yo aghnyāyā bharati kīramaghne teāśīrāi harasāpi vśca"
Which usually is translated as: "The fiend who consumes flesh of cattle, with flesh of horses and of human bodies, who slaughters the milk producing cow, O Agni, tear off the heads of such with fiery fury". The milk-giving cow here is described as “Aghnya” which means “that what is not to be sacrificed”. 

BRIDGING THE GAP OF GAINING ECONOMIC IMPORTANCE
Now in this world of democracy, you cannot tear off the heads of such people who slaughters cow for economic gain, but surely we may make our combine efforts to get rid of this malpractice by helping in giving high economic value to our mother cow.
Here, our role comes in as to trace out the ways how we can increase revenue with the use of divine dung ( gobar). In our initial experimentation phase we came to know that the fibre extracted out of the divine cow dung can be used to make paper.
We further went on our research phase where lot of experimentation work was carried out and came to the conclusion that we can make good quality paper from the currently less economic valued cow dung.
ADVANTAGES
Hindus believe that at the time ‘ prana’ and soul leaves the body it is severely painful that the attention is distracted thereby the rememberance of almighty becomes impracticable or impossible. We believe ‘ antmati swagati’. One gets disposal according to the thoughts of the last moment because we Hindus believe in existence of soul and salvation of soul.
Our imagination is that if the surroundings are full of divinely effects, the thinking of the last moment will get effected. In this way if the walls are surrounded with positive symbols and cow dung, the memory and rememberance of almighty will be practicable as we have developed cow dung paper with divine symbols, slogans and mantras to be used as wallpapers in whatever surroundings. These may be desired by people.
In our ancient times, the gobar used to applied on the walls of the houses and temples to make the environment positive as well as to give energy in its surroundings. But with the passage of time it is impracticable to do so. But with our mission to save cows, we have developed with the help of our research team a special quality cow dung hand made wall paper which can be pasted on the walls to apply the old practice in these modern days of technology and science.
The main advantages of using divine hand made paper are enumerated as under:
  • Organic
  • Eco-friendly
  • Positive atmosphere in the environment.
  • Positive energy in the environment.
  • Helps in saving trees, thereby helping in making our earth green.
  • Spreading awareness among our youth generation the need for using renewable energy resources.
  • Recyclable
  • Very high spiritual value
ALTERNATIVE USE OF COW PRODUCTS
The five products (panchgavya) of the cow — milk, curd, ghee butter, urine and dung — are all used in puja (worship) as well as in rites of extreme penance. The milk of the family cow nourishes children as they grow up, and cow dung (gobar) is a major source of energy for households throughout India in ancient times. Cow dung is among the materials used for a tilak - a ritual mark on the forehead. Most Indians do not share the western revulsion at cow excrement, but instead consider it an heavenly and useful natural product. Everything from a cow was used from their droppings to assistance with plowing the fields. The day-to-day work with the cow was much more important to the people's lives. Every part of the cow holds religious symbolism.
We would like to have your kind association so that the people become aware of our old tradition and culture and emphasize on using such things in order to lay a helping hand to save mother cow from being slaughtered.

Contact Details 

 Ca. Sachin Singhal
+91 98973 11709
info@gaupal.in