जिस मेट्रो का मॉडल बड़े-बड़े इंजीनियर बनाते हैं, यदि दसवीं का एक छात्र इसे बनाएं तो सुनने में थोड़ा अटपटा लगता है, लेकिन यह सच है। यूपी के शामली जिले में रहने वाले दसवीं के छात्र अब्दुल समद ने यह कर दिखाया है। उसने मेट्रो ट्रेन का एक ऐसा डेमो तैयार किया है, जो बाकायदा डीसी करंट से चलती है। इसे देखकर अच्छे-अच्छे टेक्निकल स्टूडेंट भी दांतों तले उंगली दबा रहे हैं। यूपी के शामली जिले के गांव कैंडी बाबरी में सईद के 14 वर्षीय बेटे अब्दुल समद ने निम्न स्तर के संसाधनों से यह नायाब कारनामा कर दिखाया है। उसने मेट्रो ट्रेन और उसका ट्रैक बनाकर एक अनोखी मिसाल पेश की है। वह एक गरीब परिवार से है और उसके पिता दिल्ली में प्राइवेट नौकरी करते हैं। 0वीं में पढ़ता है अब्दुल समद
समद गांव के इंटर कॉलेज में कक्षा दसवीं का छात्र है। बचपन से ही उसे कुछ नया करने का शौक रहता था, लेकिन आर्थिक तंगी के चलते वो अपने सपनों को पर नहीं लगा पा रहा था। यही वजह है कि गांव के निम्न स्तर के संसाधनों से तैयार किए गए इस डेमो में रेल की पटरी लकड़ी की बनाई गई है। उसके नीचे लकड़ी के पोल लगाए गए हैं और ऊपर तांबे के दो तार लगाए गए हैं, जिसमें डीसी करंट दौड़ता है। इस ट्रेन के इंजन इस दोनों तारों से टच होकर उसी तरह से चलते हैं जैसे हूबहू मेट्रो ट्रेन ट्रैक पर सरपट दौड़ रही हो।
पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम हैं प्रेरणा स्रोत
यह छात्र पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम को अपना प्रेरणा स्त्रोत मानता है। इसके घर की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है। इस वजह से यह छात्र अपनी पढ़ाई गांव के ही स्कूल में पूरी कर रहा है। उसकी चाहत है कि यदि उसे सरकार की ओर से मदद मिले और उसकी शिक्षा उच्च स्तर पर हो तो ये देश के लिए और बड़े अविष्कार कर सकता है।
Saturday, January 31, 2015
Thursday, January 29, 2015
First Solar Road Netherland
The world’s first solar bike lane is soon to be available for use in the Netherlands! The bike path that connects the Amsterdam suburbs of Krommenie and Wormerveer is a 70-meter stretch of solar-powered roadway set to open for the public on November 12th, 2014.
The new solar road, which costs €3m (AUD$4.3m), was created as the first step in a project that the local government hopes will see the path being extended to 100 metres by 2016.
More complimentary plans are also on the table as the country intends to power everything from traffic lights to electric cars using solar panels.
School children and commuters see the bike road as very useful and a cool part of their daily commute, with approximately 2,000 cyclists expected to use it on an average day.
The road, which is named by the Netherlands Organization for Applied Scientific Research (TNO) as SolaRoad, is set to open in the next week. It is made up of rows of crystalline silicon solar cells, which were embedded into the concrete of the path and covered with a translucent layer of tempered glass.
Science Alert reported:
“The surface of the road has been treated with a special non-adhesive coating, and the road itself was built to sit at a slight tilt in an effort to keep dust and dirt from accumulating and obscuring the solar cells.”
Since the path cannot be adjusted to the position of the sun, the panels will generate approximately 30% less energy than those placed on roofs. However, the road is tilted slightly to aid water run-off and achieve a better angle to the sun and its creators expect to generate more energy as the path is extended to 100 metres in 2016.
Actually, SolaRoad is not the first project aimed at turning roads and pathways into energy-harvesting surfaces. Solar Roadways are another major project -you can find out more about them by clicking HERE. The following video was posted online less than year ago, getting over $2.2 million to start the production.
Wednesday, January 21, 2015
दुनिया का सबसे कम उम्र का बिजनेसमैन, स्कूल प्रोजेक्ट से खड़ी कर डाली कंपनी
सिलिकॉन वैली में उद्योगपति बनने के लिए अब उम्र बाधा नहीं हैं। 13 वर्षीय शुभम बनर्जी ही इसका सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है। आठवीं में पढ़ने वाले शुभम ने कैलिफोर्निया में अपनी कंपनी बनाई है जो कम कीमत वाले ब्रेल प्रिंटर और दृष्टिहीनों के लिए स्पर्श से ही लिख सकने वाला सॉफ्टवेयर तैयार करती है।
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शुभम बनर्जी
बाजार में मिल रहे इस तरह के प्रिंटर की कीमत लगभग 1.23 लाख रुपए है। इस बेतहाशा कीमत को देखते हुए पिछले साल शुभम ने स्कूल के साइंस प्रोजेक्ट के लिए लेगो रोबोटिक किट युक्त ब्रेल प्रिंटर बनाया था। उसके इस इनोवेशन ने बहुत सारे अवॉर्ड जीते। दृष्टिहीन समुदाय की ओर से मिले जबर्दस्त प्रतिसाद के बाद शुभम ने अपनी कंपनी ब्रेगो लैब्स खोलने का फैसला लिया। इंटेल के अधिकारी भी शुभम के प्रिंटर से इंप्रेस हुए और उन्होंने शुभम की कंपनी में भरोसा जताया और बड़ा इन्वेस्टमेंट किया है। हालांकि इसका खुलासा नहीं किया गया है कि यह राशि कितनी है। इंटेल से निवेश पाने वाला शुभम संभवत: सबसे युवा उद्यमी है।
दिल्ली में पढ़ी शुभम की मां
शुभम की कंपनी में 10 कोर मेंबर हैं जो उन्हें अलग-अलग मामलों में मदद करते हैं। इन लोगों में शुभम के साथ-साथ उनके माता-पिता भी शामिल हैं। शुभम के पिता निलॉय बनर्जी कंपनी में एक मेंटर और कोच के रूप में कार्यरत हैं। वहीं, शुभम की मां लीगल मामलों की सलाहकार हैं। शुभम की मां ने ग्रैजुएशन करने के बाद दिल्ली के वाईएमसीए कॉलेज से एमबीए की डिग्री ली है।
कम कीमत वाला ब्रेल प्रिंटर बनाएंगे
शुभम एक ऐसा प्रिंटर बनाना चाहता है जिसका वजन कुछ ही पाउंड हो, इसकी कीमत 21594 रुपए तक हो। अभी जो प्रिंटर मिल रहे हैं उनका वजन लगभग 9 किलो है। यह प्रिंटर ब्रेल रीडिंग मटेरियल को प्रिंट कर सकेगा। इस प्रिंटर में स्याही की जगह उभरे हुए डॉट्स का उपयोग किया जाएगा। इंटेल के इन्वेंटर प्लेटफॉर्म के डायरेक्टर एडवर्ड रॉस कहते हैं कि शुभम एक बड़ी समस्या को हल कर रहा है।
देश के दस गांव जो बन गये हैं दूसरों के लिए नजीर
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किसी साइट पर देश के दस बेहतरीन गांवों की सूची देखी तो मैंने भी अपनी पसंद के दस गांव छांट लिये हैं. ये मेरे हिसाब से देश के दस बेहतरीन गांव हैं. जिस जमाने में गांवों को नष्ट-भ्रष्ट करके शहरों को आबाद करने की हवा चल रही है, उसमें इन गांवों ने अपने तरीके से अपने गांवों को आबाद किया है. आइये इन गांवों के बारे में जानते हैं.
1. हिवरे बाजार- 54 करोड़पतियों का गांव
हिवरे बाजार महज कुछ दशक पहले महाराष्ट्र के सुखाडग्रस्त जिला अहमदनगर का एक अति सुखाड़ ग्रस्त गांव हुआ करता था. लोगबाग गांव छोड़कर शहर की ओर पलायन कर रहे थे. उसी दौर में एक युवक मुंबई से नौकरी छोड़कर गांव आ गया. उसने अन्ना के गांव रालेगन सिद्धी को अपना आदर्श बनाया और एक दशक से भी कम समय में इसके हालात बदल गए, अब इसे देश के सबसे समृद्ध गांवों में गिना जाने लगा है. यह सब किसी जादू की छड़ी से नहीं बल्कि यहां के लोगों की सामान्य बुद्धि से संभव हुआ है. यह सब उन्होंने सरकारी योजनाओं के जरिए प्राकृतिक संसाधनों, वनों, जल और मिट्टी को पुनर्जीवित कर किया. अब खेती और उससे जुड़े कार्यों के जरिये लोग भरपूर आय अर्जित कर रहे हैं. दूर दराज से लोग इस गांव की खुशहाली की कहानी जानने पहुंचते हैं.
2. पुनसरी- डिजिटल विलेज
कल्पना कीजिए एक ऐसे गांव की जहां इंटरनेट हो, स्कूलों में एसी और सीसीटीवी कैमरों के साथ मिड-डे-मील भी बढिय़ा मिले. इतना ही नहीं सीमेंटेड गलियां, पीने के लिए मिनरल वॉटर और ऐसी मिनी बस गांव के लिए उपलब्ध हो जो सिर्फ गांव के ही लोगों के आने-जाने के काम आए. यह कोई स्वप्न नहीं है, इस सपने को हकीकत की धरातल पर उतारा है गुजरात के हिम्मतनगर में स्थित पुनसरी गांव के लोगों ने. आज इस गांव की पहचान डिजिटल विलेज के रूप में है. केंद्र सरकार पुनसरी के मॉडल को अपनाकर ऐसे 60 गांव पूरे देश में तैयार करना चाहती है.
3. मेंढालेखा- पूरा गांव एक इकाई
महाराष्ट्र के गढ़चिरौली जिले का मेंढ़ालेखा गांव भी अजब है. एक दिन गांव की ग्राम सभा बैठी और तय कर लिया कि अब गांव में किसी की कोई व्यक्तिगत जमीन नहीं होगी. गांव के तमाम लोगों ने अपनी जमीन ग्रामसभा को दान कर दी और सामूहिक खेती के लिए तैयार हो गये. मेंढालेखा का इतिहास ही ऐसा है कि वहां लोग ऐसे काम के लिए सहज ही तैयार हो जाते हैं. यह देश का पहला गांव है जहां लोगों ने सरकार से लड़कर जंगल के प्रबंधन का अधिकार हासिल किया. अब उस गांव के आसपास के जंगल के मालिक खुद गांव के लोग हैं. वही जंगल की सुरक्षा करते हैं और वहां उगने वाले बांस को बेचते हैं.
4. मावलानॉंग- एशिया का सबसे स्वच्छ गांव
मेघालय राज्य के छोटा से गांव मावलानॉंग डिस्कवरी पत्रिका ने 2003 में एशिया के सबसे स्वच्छ गांव का खिताब दिया है. यह गांव शिलांग से 90 किमी दूर है. अक्सर यहां की स्वच्छ आबोहवा का अवलोकन करने के लिए पर्यटक पहुंचते हैं. पर्यटक बताते हैं कि आप उस गांव में कहीं सड़क पर या आसपास पॉलिथीन का टुकड़ा या सिगरेट का बट भी नहीं देख सकते हैं.
5. धरनई- ऊर्जा के मामले में आत्मनिर्भर गांव
बिहार के जहानाबाद जिले का धरनई गांव संभवतः देश का पहला गांव है जो ऊर्जा के मामले में आत्मनिर्भर हो गया है. ग्रीनपीस संस्था के सहयोग से इस गांव ने अपना सोलर पावर प्लांट स्थापित किया है और इन्हें घर में रोशनी, पंखे और खेतों की सिंचाई के लिए चौबीस घंटे अपनी सुविधा के हिसाब से बिजली उपलब्घ है. इस गांव ने 30 साल तक सरकारी बिजली का इंतजार किया औऱ फिर एक नया रास्ता तैयार कर लिया. अब यहां लोग नहीं चाहते कि सरकारी बिजली उनके गांव तक पहुंचे.
6. धरहरा- बेटियों के जन्म पर पेड़ लगाने की परंपरा
बिहार के ही भागलपुर जिले का धरहरा गांव पिछले कुछ सालों से लगातार सुर्खियों में रहा है. इस गांव में बेटियों के जन्म पर पेड़ लगाने की परंपरा है. इससे यह गांव एक साथ लैंगिक भेदभाव का खिलाफत कर रहा है और पर्यावरण के प्रति अपना जुड़ाव भी जाहिर करता है. इस गांव की थीम को लेकर एक बार बिहार सरकार ने गणतंत्र दिवस की झांकी भी राजपथ पर पेश की थी. हालांकि पिछले साल यह गांव दूसरी वजहों से विवाद में रहा. मगर इस गांव ने अपने काम से देश को जो मैसेज दिया वह अतुलनीय था.
7. विशनी टीकर- न मुकदमे, न एफआइआर
झारखंड के गिरिडीह जिले का यह गांव अनूठा है. पिछले दो-तीन दशकों से इस गांव का कोई व्यक्ति न तो थाने गया है और न ही कचहरी. इस दौर में जब गांव के लोगों की आधी आमदनी कोर्ट कचहरी में खर्च हो जाती है, यह गांव सारी आपसी झगड़े औऱ विवाद मिल बैठकर सुलझाता है. गांव की अपनी पंचायती व्यवस्था है, वही इन विवादों का फैसला करती है.
8. रालेगण सिद्धि- अन्ना का गांव
आप अन्ना के राजनीतिक आंदोलन पर भले ही सवाल खड़े कर सकते हैं, मगर उन्होंने जो काम सालों की मेहनत के जरिये अपने गांव रालेगण सिद्धि में किया है उस पर सवाल नहीं खड़े कर सकते. जल प्रबंधन औऱ नशा मुक्ति अभियान के जरिये अन्ना ने रालेगण सिद्धि को आदर्श ग्राम में बदल दिया. हिवरे बाजार जैसे गांव के लिए रालेगण सिद्धि पाठशाला सरीखी रही है. आज भी लोग उस गांव में जाकर समझने की कोशिश करते हैं कि अन्ना ने कैसे इस गांव की तसवीर बदल दी.
9. शनि सिंगनापुर- इस गांव में नहीं हैं दरवाजे
महाराष्ट्र का एक औऱ गांव. इसे भारत का सबसे सुरक्षित गांव माना जाता है. इस गांव में किसी घर में दरवाजा नहीं है और किसी अखबार में इस गांव में चोरी की खबर नहीं छपी. इस गांव में कोई पुलिस चौकी नहीं है और न ही लोग इसकी जरूरत समझते हैं और तो और इस गांव में जो एक बैंक है यूको बैंक का उसमें भी कोई गेट नहीं है. जाहिर है यह कमाल गांव के लोगों के सदव्यवहार से ही मुमकिन हुआ होगा.
10. गंगा देवीपल्ली- आत्मनिर्भर गांव
अंत में आंध्रप्रदेश का यह आत्मनिर्भर गांव. इस गांव में इतनी खूबियां है कि इसके लिए एक पूरा पन्ना कम पड़ सकता है. यह गांव अपना बजट बनाता है. हर घर से गृहकर इकट्ठा होता है. हर घर अपना बचत करता है. सौ फीसदी बच्चे स्कूल जाते हैं. सौ फीसदी साक्षरता है. हर घर बिजली का बिल अदा करता है. हर परिवार परिवार नियोजन के साधन अपनाता है. समूचे गांव को स्वच्छ पेयजल उपलब्ध है. 33 सालों से पूर्ण मद्यनिषेध लागू है. यह सब इसलिए कि गांव का हर फैसला लोग आपस में मिल बैठकर लेते हैं और हर इंसान गांव की बेहतरी के लिए प्रयासरत है.
Tuesday, January 20, 2015
बीमार बेटी को मिला टूटा बैड तो पिता चला अस्पताल जोड़ने वेल्डिंग
छह महीने पहले हुए एक वाकये ने सीकर में फतेहपुर रोड पर रहने वाले वेल्डर सलीम चौहान को बदलाव का अगुवा बना दिया। उनकी 19 साल की बेटी गंभीर बीमार थी। एसके अस्पताल में भर्ती कराया तो टूटा हुआ बैड मिला। 15 दिन में बेटी ठीक होकर घर आ गई, लेकिन सलीम के जेहन में टूटा बैड घर कर गया।
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पेशे से वेल्डर सलीम ने तय कर लिया कि अस्पताल में इलाज के लिए आने वाली किसी और बेटी या बीमार को इस परेशानी से नहीं गुजरने दूंगा। अब वे हर दिन अस्पताल आकर टूटे बैड, अलमारी और टेबल ठीक करते हैं। बकौल सलीम चौहान, किसी की मदद करने के लिए बहुत रुपए होना जरूरी नहीं बल्कि इच्छा शक्ति मायने रखती है। इस वजह से तय किया कि कारखाने के काम के साथ अस्पताल को भी समय दूंगा। सुबह नौ बजे कारखाने पहुंचने वाला उनका बेटा सात बजे जाने लगा है। बताते हैं, भाई व बेटे के भरोसे कारखाना छोड़कर मैं सुबह एसके अस्पताल आता हूं। कई बार तो यहीं तीन बज जाते हैं। हालांकि कारखाने से गुजर-बसर करने जितनी कमाई हो जाती है। लेकिन, अस्पताल में बैड व अन्य सामान की मरम्मत का खर्च किसी से लेता नहीं खुद ही वहन करता हूं। और ऐसा करने से सुकून मिलता है।
कलेक्टर से इजाजत ली और जुट गए काम में
15 दिसंबर को सलीम चौहान ने कलेक्टर को पत्र देकर इजाजत मांगी कि वह अस्पताल सुधार में योगदान देना चाहते हैं। इसके तुरंत बाद काम में जुट गए। सलीम के प्रयास की कलेक्टर और स्वास्थ्य मंत्री तारीफ कर चुके हैं। सलीम के मुताबिक एक महीने में अब तक 20 बैड, 70 कुर्सी, 15 कूलर स्टैंड, सात बोतल स्टैंड, 10 ट्रॉली, पांच अलमारी और गार्डन की रेलिंग ठीक कर दी हैं। ये सब बाजार में ठीक कराते ताे करीब 60 हजार रुपए का खर्च आता। अब अस्पताल के एक-एक वार्ड की चीज ठीक करने का प्लान बनाया है।
शोहरत के लिए नहीं, सुकून के लिए कर रहा हूं ये काम : सलीम
सलीम का कहना है यह कोशिश शोहरत पाने के लिए नहीं कर रहा हूं। सिर्फ सुकून के लिए कर रहा हूं। सभी लोगों से अपील है कि वे सफाई, अस्पताल या अन्य तरह से बदलाव के अगुवा बनने का प्रयास जरूर करें। क्योंकि अकेले सरकार-प्रशासन सबकुछ नहीं सुधार सकता है।
इसी तरह के प्रयासों से मॉडल अस्पताल बनेगा : पीएमओ
पीएमओ डॉ. एसके शर्मा का कहना है सलीम चौहान अच्छी मदद कर रहे हैं। इसी तरह के प्रयासों से ही मॉडल अस्पताल बन सकेगा। अस्पताल प्रशासन भी सुधार के लिए हरसंभव प्रयास कर रहा है। इसमें जनता के सहयोग की बड़ी जरूरत है।
मिसालः 1 किसान 120 बच्चों को पिला रहा है मुफ्त दूध
मेरठ के शामली जिले में एक किसान 120 बच्चों को मुफ्त दूध पिलाने का काम कर रहा है। इस किसान ने एक सरकारी प्राइमरी स्कूल के 10 दर्जन कुपोषित बच्चों को चिन्हित किया है और रोज उन्हें अपने घर से उबला हुआ दूध लाकर पिलाता है। इस किसान की बच्चों को एक साल तक दूध पिलाने की योजना है।
रमेश चंद्र नंबरदार करीब एक हफ्ते से 25 लीटर उबला और चीनी मिला दूध एक स्कूल में पहुंचा रहे हैं। रमेश ने कहा, 'मैं यह सुनकर बड़ा हुआ कि हमारे देश में दूध की नदियां बहती थीं। आज बच्चे कुपोषण का शिकार हो रहे हैं। हाल ही में केंद्र सरकार ने हर एमपी के एक गांव को गोद लेने की योजना शुरू की तो मुझे लगा कि मैं भी बच्चों की मदद कर सकता हूं।'
रमेश का कहना था, 'कुछ लोग गर्म कपड़े बांटते हैं, कुछ किताबें बांटते हैं। मैं चाहता था कि बच्चे मजबूत बनें। मेरे पास सीमित साधन थे लेकिन मैंने बच्चों को दूध के साथ चना और चीनी देना शुरू किया। यह 120 बच्चों के लिए काफी है।'
माजरा रोड के पास बने इस स्कूल के हेडमास्टर नीरज गोयल ने कहा, 'पहले तो हमें लगा कि रमेश खास मौकों, जैसे गणतंत्र दिवस पर बच्चों को दूध पिलाएंगे, लेकिन उन्होंने कहा कि वह रोज ऐसा करना चाहते हैं। हमें शक था कि वह रोज ऐसा कर पाएंगे, लेकिन वह लगातार दूध दे रहे हैं। दूध काफी अच्छी क्वॉलिटी का है। अगर ऐसे ही और लोग सामने आएं तो बच्चों का जीवन बदल सकता है।'
रमेश का कहना है कि उनके पास अच्छी नस्ल की गायें हैं। वे रोजाना 45 लीटर दूध देती हैं। उनकी एक साल तक बच्चों को दूध पिलाने की योजना है। उन्होंने अपने आइडिए के साथ शामली के डीएम नरेंद्र प्रसाद सिंह से भी मुलाकात की थी और उन्होंने भी रमेश का उत्साहवर्धन किया।
Monday, January 19, 2015
देसी जुगाड़ से 2000 में बना ली वाशिंग मशीन, जानें कैसे करती है कामदेसी जुगाड़ से 2000 में बना ली वाशिंग मशीन, जानें कैसे करती है काम
रायपुर। 'वॉशिंग मशीन महंगी होती है, उसमें ज्यादा डिटर्जेंट इस्तेमाल होता है। डिटर्जेंट से प्रदूषण फैलता है। इसलिए मैंने इस मशीन को बनाया है।' अपने आविष्कार की वजह कुछ ऐसे ही साफ करते हैं कमल अग्रवाल।
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अपने स्वदेशी वाशिंग मशीन के साथ कमल अग्रवाल
शैलेंद्र नगर निवासी कमल अग्रवाल ने वॉशिंग मशीन का एक ऐसा विकल्प तैयार किया है जो ईको फ्रेंडली होने के साथ-साथ कम कीमत में वॉशिंग मशीन की जरूरत को पूरा करती है। इस मशीन को इन्होंने स्वदेशी वॉशिंग मशीन नाम दिया है।
ऐसे करती है काम
यह मशीन वाटर और एयर प्रेशर फॉर्मूले पर काम करती है। कमल अग्रवाल ने बताया कि एक मोटे प्लास्टिक पाइप में लंबा कट उन्होंने लगाया है। इस कटे पाइप को नीचे की तरफ करके उन्होंने प्लास्टिक के बॉक्स में फिट किया है। इस पाइप को एयर ब्लोअर से जोड़ा दिया गया है। जैसे ही ब्लोअर ऑन होता है तेज हवा बॉक्स में आती है। पानी भरा होने पर हवा की वजह से पानी उछलने लगता है और इसके दबाव से कपड़े धुलते हैं।
वाटर फिल्टर भी बनाया
क्या आप एक फीट लंबी प्लास्टिक पाइप, कोयले के चूरे और बाल्टी से मिनरल वाटर देने वाला वाटर फिल्टर बना सकते हैं? कमल अग्रवाल ने महज तीन सौ रुपए में ऐसा ही वाटर फिल्टर बनाया है।
अपने वाटर फिल्टर के साथ कमल अग्रवाल
वाशिंग मशीन का डेमो देते कमल अग्रवाल
कम लागत से तैयार यह वाशिंग मशीन किसी भी महंगी मशीन जैसा ही रिजल्ट देती है
कम लागत से तैयार यह वाशिंग मशीन किसी भी महंगी मशीन जैसा ही रिजल्ट देती है
कम लागत से तैयार यह वाशिंग मशीन किसी भी महंगी मशीन जैसा ही रिजल्ट देती है
कमल अग्रवाल ने नारियल के जूट से ईको-फ्रेंडली बास्केट भी बनाए हैं।
कभी थे क्लीनर, आज हैं इटली की तीसरी सबसे बड़ी टेलिकॉम कंपनी के CEO
"एक क्लीनर से लेकर चीफ एग्जीक्यूटिव तक का सफर मेरे लिए एक रोलर कोस्टर राइड जैसा रहा। डेस्टिनी मुझे फर्श से अर्श तक ले आई लेकिन जब भी अपने स्ट्रगल के दिन याद करता हूं तो रौंगटे खड़े हो जाते हैं। इटली में जब कदम रखा था तब मेरे पास कुल जमापूंजी सिर्फ 1 लाख रुपए थे और आज भारत में मैंने 200 करोड़ रुपए इन्वेस्ट किए हैं।" यह कहना है मीडियाकॉम मोबाइल कंपनी के सीईओ, इंडिया हरबिंदर सिंह धालीवाल का।
मोहाली में पले-बढ़े हरबिंदर 15 सालों से इटली में रह रहे हैं। इटली में भारतीयों के लिए हरबिंदर काफी कुछ कर भी चुके हैं। इस पर इटली सरकार ने इन्हें पीस एंबेसडर के अवॉर्ड से नवाजा है। यह अवॉर्ड हासिल करने वाले हरबिंदर इकलौते भारतीय हैं। इसके साथ ही इटैलियन म्युनिसिपल काउंसिल में सिख कम्युनिटी को हरबिंदर ही रिप्रेजेंट करते हैं। इटली की थर्ड लार्जेस्ट मोबाइल कंपनी मीडियाकॉम को अब हरबिंदर भारत में लॉन्च करने जा रहे हैं और इसी सिलसिले में अपने शहर चंडीगढ़ में आए हुए हैं।
Sunday, January 18, 2015
हिंद महासागर में मिले 2 अजब-गजब ‘एलियंस’
महासागर में दुर्लभ खनिजों का पता लगाने के लिए समुद्र की गहराइयां छान रही एक चीनी पनडुब्बी जियाओलोंग ने 2 अजब-गजब जीवों को खोज निकाला है। इस सबमरीन ने गहरे पानी में रहने वाले समुद्री जीवों से संबंधित 17 चीजें एकत्र की हैं। इन 2 समुद्री जीवों के संबंध में वैज्ञानिकों को भी कोई जानकारी नहीं थी।
नीले-भूरे रंग का पारदर्शी जीवः दक्षिणी पश्चिमी हिंद महासागर में मौजूद इस पनडुब्बी पर जब सी कुकूम्बर के आकार के इस समुद्री जीव को लाया गया तो यह रहस्यमयी जीव 3 हिस्सों में टूट गया। इस जीव का आकार इतना पारदर्शी था कि वैज्ञानिक इसके नीले और भूरे रंग के विसरा को स्पष्ट तरीके से देख पा रहे थे।
स्टेट ओशनिक अडमिनिस्ट्रेशन के सेकेंड इंस्टिट्यूट ऑफ ओशनॉग्रफी के वैज्ञानिक लू बो ने बताया, ‘यह विशेष प्रकार का सी कुकूम्बर हो सकता है, लेकिन हमें प्रयोगशाला में परीक्षण कर इसके बारे में और जानकारी एकत्र करनी होगी।’
गुलाबी रंग का सांप जैसा जीवः वैज्ञानिकों ने बताया कि दूसरे अजीब किस्म का जीव 330 सेंटीमीटर लंबा और 3 सेंटीमीटर चौड़ा है। इसके बारे में वैज्ञानिक पूरी तरह अनजान हैं। यह गुलाबी रंग का सांप जैसा जीव है। दबाव में बदलाव के कारण इसके शरीर पर 2 बुलबुलों सी आकृतियां उभर आईं हैं। लू बो ने बताया कि ये दोनों नए जीव नई प्रजातियां हो सकती हैं, लेकिन पोत पर सीमित साधनों से जांच के कारण हम इस संबंध में अभी पक्के तौर पर कुछ नहीं कह सकते।
पनडुब्बी ने समुद्र की गहराई से कुल 6.9 किलो सामान इकट्ठा किया, जिनमें 15 गहरे पानी की झींगा मछलियां, पानी और सल्फाइड शामिल था।
हिंद महासागर में अपनी गतिविधि बढ़ाते हुए पिछले दिनों चीन ने तांबा, जिंक और अन्य कीमती धातुओं की खोज का काम शुरू किया था। चीन ने 2012 में अंतरराष्ट्रीय समुद्रतल प्राधिकरण से हिंद महासागर के 10 हजार वर्ग किमी क्षेत्र में सल्फाइड अयस्क की खोज की अनुमति ली थी। प्राधिकरण ने चीन को 15 सालों के लिए अनुसंधान की इजाजत दी है।
Friday, January 16, 2015
Top 8 Tech Innovations of 2014
Technology revolution reached newer heights in 2014 as we saw the advent of various innovative technologies like smartwatches and fitness bands. The year also promised us of a few bizarre innovations, one of them being “urine that could be used as fuel” somewhere in the near future. While most of these innovations remained in the spotlight for a while, there were a few being worked upon with an intention to make lives a lot better.
Remember the hoverboard in the movie ‘Back to the Future’ part 2 and 3? It is for real. Earlier last year, the web seemed to have been flooded with videos demonstrating fake hoverboards. However, Arx Pax, a California-based company decided to come up with a real hoverboard called the Hendo Hoverboard.
Here is a list of some of the best technological breakthroughs of 2014.
GOOGLE GLASS
Released back in 2013 with a price tag of $1,500, the Glass was made public only in May 2014. It was developed by Google X, the same Google facility that also has been working on the driver-less car.
Some of its features include a touchpad located on the side, a camera capable of capturing photos and recording videos at 720p, and above all, a LED illuminated display.
HTML5
In October 2014, the World Wide Consortium decided to endorse HTML5 as an official standard, which in fact came in as a good news for web developers around the world. Michael Smith one of the core members of the development team said it took 7 years of hard work to achieve the milestone.
HTML5 includes features such as video and audio track support, canvas elements for graphics rendering and native support for SVG.
GOOGLE’S SMART CONTACT LENSIn January last year, Google developed contact lenses capable of monitoring glucose levels in a diabetic patient. The lenses consist of chips and sensors that can efficiently measure glucose levels in a tear.
HOVERBOARDRemember the hoverboard in the movie ‘Back to the Future’ part 2 and 3? It is for real. Earlier last year, the web seemed to have been flooded with videos demonstrating fake hoverboards. However, Arx Pax, a California-based company decided to come up with a real hoverboard called the Hendo Hoverboard.
The current model hovers about 3cm off the ground and can carry a maximum of 140kg for around 15 minutes. The gizmo comes with a price tag of $10,000.
3-D PRINTING IN MEDICINE3D printers are now being used for building prosthetics devices and carrying out numerous surgical procedures. The technology is still in the pre-clinical stage, but is sure to change millions of lives in the years to come.
MEDTRONIC MICRA – THE SMALLEST PACEMAKERMedtronic, one of the leaders in medical technology has developed the Micra Pacemaker that can easily fit inside the ventricular cavity, and causes no pacemaker complications. The device, due to its extremely small size, will largely prevent surgical revisions caused by incorrectly positioned leads.
APPLE PAYFor quite a while, numerous companies have been trying hard to make mobile payments much efficient and error free. While many seemed to have got it “not quite right”, Apple marched in with “Apple Pay”. In just 72 hours of its launch, over 1 million credit cards were registered for the service.
The mobile payment industry is expected to grow from $52 billion last year to $142 billion in 2019, with Apple Pay hopefully being a major contributor.
MOTO 360Announced back in March 2014, the Moto 360 smartwatch runs on Android Wear, a version specifically designed for wearable devices.
Featuring a 1.56 inch LCD display, the watch is powered by a 1 GHz processor and offers a storage space of up to 4GB. The device is available in 2 colours – black and white.
That’s not all. 2014 witnessed many more technological advances in almost every field known. However, listing them all down may not be possible. While we have just entered 2015, we can surely expect some more exciting innovations to be unveiled.
Who knows? Someone may probably come up with a time machine that takes you to the past and the future, or may be a flying car that might prevent you from getting stuck in traffic. So, hold your breath. Something cool is surely coming your way
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