नवादा. बात 32 साल पहले की है। बिहार के नवादा जिले के धनवां गांव की पुष्पा की शादी गया जिले के फतेहपुर के धनगांव में लालनारायण सिंह के पुत्र विनोद कुमार के साथ हुई थी। तब पुष्पा 13 साल की थी। छह साल बाद उसका द्विरागमन हुआ। लेकिन 3 माह बाद पति की ब्लड कैंसर से मौत हो गई। पुष्पा पढ़ाई जारी रखना चाहती थी। लेकिन, ससुरालवाले तैयार नहीं थे। तब पुष्पा के पिता अर्जुन सिंह ने नवादा के आरएम डब्लू कॉलेज में ग्रेजुएशन में दाखिला कराया। पुष्पा को तीन साल बाद ननद की शादी में ससुरालवाले ले गए। शादी में ननद और ननदोसी के विवाह के कपड़े को पुष्पा ने छू लिया था, तब न केवल उन्हें फटकारा गया, बल्कि अशुभ बताते हुए उस कपड़े को धुलवाए गए। उस घटना के बाद उसके जीवन बदलाव आ गया। द्विरागमन के बाद ही पति की मौत कैंसर से हो गई, लोगों ने लाख लांछन लगाए, सब-कुछ सहती रही, हार नहीं मानी पुष्पा ज्ञान-विज्ञान समिति में ज्वाइन की। तब पुष्पा के मां-पिता को उसके ग्रामीण तरह-तरह का ताना देकर प्रताड़ित करना शुरू कर दिया। बदचलन और पतुरिया कहने लगे, पर पुष्पा और उसके परिवार के लोग विचलित नहीं हुए। वह आगे बढ़ती गई। वह ग्रेजुएशन और टीचर ट्रेनिंग की। स्वास्थ्य, शिक्षा और अंधविश्वास के खिलाफ आंदोलन को आगे बढ़ाया। वह राज्य महिला सेल की संयोजिका हुई। 2006 में जब वह चितरघट्टी पंचायत में टीचर बनी, तब भी सामाजिक अभियान जारी रखा। महिलाओं को आर्थिक उन्नति की राह बताने लगी। नाबार्ड के जरिए 50 से अधिक समूह का गठन करवाई। लिहाजा, 2014 में भदसेनी की एक समूह को राज्य का बेस्ट समूह का अवार्ड मिला। अराजक तत्व पुष्पा के व्यक्तिगत चरित्र पर लांछन भी लगाते रहे। मिला था मौलाना अबुल कलाम आजाद पुरस्कार, दो लाख नगद से हुई थीं सम्मानित सामाजिक क्षेत्र में समर्पण के कारण 2009 में शिक्षा विभाग ने उसे राज्य साधन सेवी बनाया। 11 नवंबर को तत्कालीन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए मौलाना अबुल कलाम आजाद पुरस्कार दिया। पुरस्कार के पहले भी लांछन लगाया गया। लेकिन वह रुकी नहीं। दूसरी तरफ, पुष्पा अपने छोटे भाई मुकेश और बहन विनीता की पढ़ाई कराई। बहन की बगैर दहेज की शादी भी कराई। अंधविश्वास, अशिक्षा और कुपोषण के खिलाफ उसकी लड़ाई जारी है। पुष्पा से गांवों में विधवा जैसा कपड़ा और आचरण की उम्मीद करते हैं। मांस-मछली खाने पर सवाल उठाते हैं। लेकिन पुष्पा वह ऐसी किसी परंपरा को नहीं मानती। नजरिया बदलें, हमारी भी इच्छाएं होती हैं ^मैं पसंद का कपड़े पहनती हूं और सार्वजनिक तौर पर मांस-मछली खाती हूं। वह बाल विवाह का विरोध करती रही। कई विधवा और अंतरजातीय विवाह करवाई। पिता का सहयोग नहीं मिला होता तो, अन्य महिलाओं की तरह घर के भीतर विधवा का जीवन जी रही होती। मेरा यही मानना है कि लोगों को विधवाओं के प्रति अपने नजरिए को बदलना चाहिए। उनकी भी इच्छाएं होती हैं। -
Sunday, February 22, 2015
Thursday, February 19, 2015
गौमूत्र से 13 साल की लड़की ने तैयार की बिजली
उदयपुर| 8वीं में पढ़ने वाली 13 वर्षीय साक्षी दशोरा ने गाैमूत्र से बिजली तैयार की है। मावली के गड़वाड़ा व्यास एकेडमी की इस छात्रा ने गाय के गोबर और गौमूत्र साइंटिफिक यूज बताते हुए “इम्पॉर्टेंस ऑफ काउब्रीड इन 21 सेंचुरी’ प्रोजेक्ट बनाया है। मिनिस्ट्री ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी के इंस्पायर अवार्ड के तहत उसके प्रोजेक्ट को अब इंटरनेशनल लेवल पर पहचान मिलेगी। ये प्रोजेक्ट दो माह बाद जापान में आयोजित सात दिवसीय सेमिनार में प्रदर्शित होगा। वहां साक्षी लेक्चर भी देगी।
साक्षी ने अगस्त 2014 में हुई प्रदर्शनी में इस प्रोजेक्ट के लिए उदयपुर जिले में छटी रैंक, फिर सितम्बर में डूंगरपुर में आयोजित राज्य स्तरीय प्रदर्शनी में 12वीं रैंक और इसके बाद नेशनल लेवल दूसरी रैंक हासिल की थी। साक्षी सहित प्रदेश के अन्य तीन बच्चों का भी जापान के लिए चयन हुआ है।
एेसे बनाई बिजली
साक्षी ने बताया कि गौमूत्र में सोडियम, पोटेशियम, मेग्नीशियम, सल्फर एवं फास्फोरस की मात्रा रहती है। उन्होंने प्रोजेक्ट में एक लीटर यूरीन में कॉपर और एल्युमिनियम की इलेक्ट्रोड डाली, जिसे वायर के जरिए एलईडी वॉच से जोड़ा।
बिजली पैदा होते ही वॉच चलने लगी। गौमूत्र की मात्रा के अनुसार बिजली पैदा होगी। गौमूत्र कैंसर सहित अन्य बीमारियों से भी बचा सकता है। गोबर से लेप करें तो तापमान कंट्रोल रहेगा। इससे अगरबत्ती भी बनाई जा सकती है।
Wednesday, February 18, 2015
एक चाय वाला, जिसने लिखी हैं 24 से ज्यादा किताबें (Personal Creativity)
चाय बेचते-बेचते एक इंसान कब प्रधानमंत्री बन जाए, यह तो आपने देख ही लिया है। अब हम आपको एक और ऐसे चाय वाले के बारे में बताने जा रहे हैं, जो चाय पिलाने के साथ लेखन भी करते हैं। महाराष्ट्र के एक छोटे से गांव में जन्मे लक्ष्मण राव दिल्ली के आईटीओ की लाल बत्ती से चंद कदमों की दूरी पर बने हिंदी भवन के सामने चाय बेचते हैं। वह अपने हाथों से बनी चाय के साथ अपनी लिखी पुस्तकों की बिक्री भी करते हैं।
62 साल के लक्ष्मण राव अभी तक 24 किताबें लिख चुके हैं, जिनमें 12 किताबें छप चुकी हैं और जून 2015 तक पांच और नई किताबें भी प्रकाशित करने वाले हैं। वह पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल से सम्मानित भी हो चुके हैं। चाय बनाते-बनाते करीब 40 साल गुजार चुके लक्ष्मण राव की किताबें अब बुक फेयर में भी मिलने लगी हैं। हॉल नंबर 12 में एक छोटी सी स्टॉल पर उनकी किताबें मिल रही हैं।
लक्ष्मण राव से खास बातचीत में उन्होंने बताया कि वह अपनी किताबें किसी बड़े प्रकाशन के जरिए नहीं, बल्कि खुद अपने नाम से प्रकाशित करते हैं। लक्ष्मण राव आईटीओ पर पटरी पर लगी चाय की दुकान के किनारें इन पुस्तकों को सेल करते हैं। वह अपनी लिखी किताबों की मदद से करीब 10 हजार रुपये प्रतिमाह कमा भी लेते हैं।
कैसे जागी लिखने की कला?
सवाल पर जवाब मिला कि जब वह अपने गांव में रहते थे, तब गांव के एक छोटे से लड़के ने नदी में नहाने की इच्छा जताई और वह नदी में कूद गया। लेकिन वह वापस लौट नहीं पाया। उसी लड़के पर आधारित घटना ने उन्हें लिखने की प्रेरणा दी। रामदास जोकि उस लड़के का नाम था, वह पुस्तक उन्होंने सबसे पहले लिखी। वह रामदास नाम का एक नाटक भी लिख चुके हैं। इस किताब के लिखने से उनका मनोबल बढ़ा और फिर लिखना शुरू किया। वह मशहूर लेखक गुलशन नंदा को अपना गुरू मानते हैं। हालांकि, उनकी कभी गुलशन नंदा से मुलाकात नहीं हुई, लेकिन उनकी किताबों पर आधारित बनी फिल्मों को देखकर वह लेखक बनने के लिए प्रेरित हुए।
कहां से करते हैं रिसर्च?
सवाल पर लक्ष्मण राव ने जवाब दिया कि वह रोजाना पांच अखबारों को पढ़ते हैं।
इसके अलावा दरियागंज में संडे मार्केट से किताबें खरीदते हैं। कुछ एक किताबें उन्होंने सरकारी कार्यालयों के जरिए मिली जानकारी पर आधारित भी लिखी है। उन्होंने बताया कि एक किताब उन्होंने इंदिरा गांधी के कार्यकाल पर आधारित लिखी है। वह इस किताब को लिखने से पहले इंदिरा गांधी से मिले थे और उनके जीवन पर किताब लिखने की इच्छा जाहिर की। लेकिन इंदिरा गांधी ने जीवन पर लिखने की बजाय अपने कार्यकाल पर लिखने की अनुमति दी। उनकी यह पुस्तक 1984 में प्रकाशित हुई।
राव ने बताया कि वह पटरी पर अपनी पहली पुस्तक के प्रकाशित करने के दौरान से बेच रहे हैं, लेकिन 2011 से उन्होंने बुक फेयर में भी स्टॉल लगाकर बेचनी शुरू की। अब उनकी पुस्तकें ऐमजॉन और फ्लिपकार्ट पर भी उपलब्ध हैं। न्यूजहंट नाम की एक वेबसाइट उनकी किताबों के लिए 80 हजार रुपये भी दे चुकी है। राव ने अपने परिवार की जानकारी देते हुए बताया कि उनके घर में दो बेटे और उनकी पत्नी है। वह विवेक विहार में एक किराये के मकान में रहते हैं।
कैसे जागी लिखने की कला?
सवाल पर जवाब मिला कि जब वह अपने गांव में रहते थे, तब गांव के एक छोटे से लड़के ने नदी में नहाने की इच्छा जताई और वह नदी में कूद गया। लेकिन वह वापस लौट नहीं पाया। उसी लड़के पर आधारित घटना ने उन्हें लिखने की प्रेरणा दी। रामदास जोकि उस लड़के का नाम था, वह पुस्तक उन्होंने सबसे पहले लिखी। वह रामदास नाम का एक नाटक भी लिख चुके हैं। इस किताब के लिखने से उनका मनोबल बढ़ा और फिर लिखना शुरू किया। वह मशहूर लेखक गुलशन नंदा को अपना गुरू मानते हैं। हालांकि, उनकी कभी गुलशन नंदा से मुलाकात नहीं हुई, लेकिन उनकी किताबों पर आधारित बनी फिल्मों को देखकर वह लेखक बनने के लिए प्रेरित हुए।
कहां से करते हैं रिसर्च?
सवाल पर लक्ष्मण राव ने जवाब दिया कि वह रोजाना पांच अखबारों को पढ़ते हैं।
इसके अलावा दरियागंज में संडे मार्केट से किताबें खरीदते हैं। कुछ एक किताबें उन्होंने सरकारी कार्यालयों के जरिए मिली जानकारी पर आधारित भी लिखी है। उन्होंने बताया कि एक किताब उन्होंने इंदिरा गांधी के कार्यकाल पर आधारित लिखी है। वह इस किताब को लिखने से पहले इंदिरा गांधी से मिले थे और उनके जीवन पर किताब लिखने की इच्छा जाहिर की। लेकिन इंदिरा गांधी ने जीवन पर लिखने की बजाय अपने कार्यकाल पर लिखने की अनुमति दी। उनकी यह पुस्तक 1984 में प्रकाशित हुई।
राव ने बताया कि वह पटरी पर अपनी पहली पुस्तक के प्रकाशित करने के दौरान से बेच रहे हैं, लेकिन 2011 से उन्होंने बुक फेयर में भी स्टॉल लगाकर बेचनी शुरू की। अब उनकी पुस्तकें ऐमजॉन और फ्लिपकार्ट पर भी उपलब्ध हैं। न्यूजहंट नाम की एक वेबसाइट उनकी किताबों के लिए 80 हजार रुपये भी दे चुकी है। राव ने अपने परिवार की जानकारी देते हुए बताया कि उनके घर में दो बेटे और उनकी पत्नी है। वह विवेक विहार में एक किराये के मकान में रहते हैं।
कुछ सपनों के मर जाने से जीवन नहीं मरा करता है... Beautiful Example of Personal Creativity
लक्ष्मी भी जब सिर्फ 14 साल की थी तब उसके पड़ौस में रहने वाले 32 साल के एक आदमी ने उसके चेहरे पर सिर्फ इसलिए तेजाब डाल दिया क्योंकि लक्ष्मी ने उससे शादी करने से इनकार कर दिया था। तब से अब तक एक फाइटर की तरह लड़ती रही है लक्ष्मी। फिलहाल स्टॉप एसिड अटैक के साथ जुड़ी लक्ष्मी ने अपना दर्द एक पत्र में बयां किया है।
लक्ष्मी की खुली चिट्ठी
"दोस्तों मैं चाहती हूं कि आप भी इस लेटर को पढ़ें। इस लेटर में बहुत सी अनकही, अनसुनी बातें होंगी। आप हमारे बारे में बहुत कुछ जानते हैं लेकिन बहुत सी बातों से आप अनजान हैं। और मैं यह बातें लिखकर आपके सामने ला रही हूं, आप ज़रूर पढ़िएगा।
जब मेरा जन्म हुआ पापा ने बहुत खुश होकर मेरा नाम लक्ष्मी रखा था। वो कहते रहते थे कि मेरे घर लक्ष्मी आई है। पापा को बेटियों से बहुत प्यार था। मैं ही उनकी बेटी और बेटा थी। बहुत प्यार करते थे। फिर मैं बड़ी होती गई। फिर हमारा एक घर हुआ। उसी घर में मेरा बचपन था। फिर तीन सालों बाद मेरे भाई का जन्म हुआ। पापा-मम्मी ने कभी कोई कमी नहीं की।
फिर मैं जब खुद थोड़ी-थोड़ी बड़ी होने लगी तो मेरे सपने शुरू हुए। मैं बहुत गाती थी, डांस करती थी। मेरा भाई कुछ भी बजाया करता था। मैं अपने घर में, चर्च में, मंदिरों में प्रोग्राम किया करती थी। कभी राधा बनती थी, कभी परी बनती थी। गाना गाकर, डांस करके बहुत खुश थी मैं। जिस अंधेरे से मुझे प्यार था आज उसी अंधेरे से बहुत डरती हूं। जो अंधेरा मुझे रौशनी की किरन दिखाता था, लड़ना सिखाता था आज वो अंधेरा मुझे कहीं दूर ले जाता है। जब मैं बड़ी होने लगी तो मन करने लगा कि मैं जो सपने देखती हूं, उन्हें पूरा किया जाए। मेरे घरवालों ने पूछा कि क्या बनना चाहती हो। मैंने कहा सिंगर। लेकिन उन्हें पसंद नहीं आया। तब मेरे मन में आया कि जब तक खुद बाहर नहीं निकलूंगी अपने लिए कुछ नहीं कर सकती। तब मैंने अपने मम्मी पापा से कहा मैं बाहर निकलना चाहती हूं, जॉब करना चाहती हूं। उन्होंने मना कर दिया।
मैंने उन्हें समझाया कि मैं अकेले नहीं निकलती हूं, डरती हूं, जब तक बाहर नहीं जाऊंगी कैसे चलेगा। बहुत समझाने के बाद उन्होंने हां कहा। लेकिन मुझे घर से ज्यादा दूर जाना मना था। तो मैंने खान मार्केट में एक बुक शॉप पर काम पकड़ा और वहीं मैंने सिंगिंग क्लास की बात भी कर ली। पर उस वक्त तक एडमिशन खत्म हो गए थे।
उसी बीच एक लड़का था जो 32 साल का था, मेरे पीछे पड़ा था। मुझे मालूम नहीं था कि उसके मन में क्या चल रहा है। उसकी फेमिली और मेरी फेमिली एकदम फेमिली जैसे थे। ढाई साल से जानते थे। और उस लड़के ने मुझे एसिड अटैक के दस महीने पहले शादी के लिए कहा। मैं हैरान हो गई। मेरा मन बहुद दुखी हो गया। मैंने साफ-साफ कहा कि मैं आपको भाई मानती हूं, आप ऐसा कैसे सोच सकते हैं। मैंने कहा कि आज के बाद बात भी मत कर लेना। मैं उनसे बात तक नहीं करती थी। स्कूल से आते जाते, वो कहा करते थे कि बहुत सुंदर होती जा रही हो। मेरे घर के पड़ौस में ही उनका ऑफिस था। बहुत परेशान किया उन्होंने, पर मेरी हिम्मत ही नहीं हुई अपने घर में बताने की। लेकिन उन सब चीज़ो से बहुत दूर थी मैं, अपने ही सपनों में खोई थी मैं। ना जाने कहां से वो इंसान शैतान के रूप में आ गया और मेरी ज़िंदगी बरबाद कर गया। उन्होंने बहुत कोशिश की, बहुत अलग-अलग ढंग से पर वो हर बार नाकाम रहा। मैं और मेरे सपने.., वो और उसका शैतानी दिमाग..!
उसने 19 अप्रेल को मुझे एसएमएस किया, शादी करना चाहता हूं, प्यार करता हूं..., नहीं दिया मैंने वापस जवाब। फिर 21 अप्रेल को फोन आता है, तुम तो अपने मां बाप का नाम रौशन करना चाहती हो ना?... तब भी मैंने कुछ गलत जवाब नहीं दिया। बस हां कर दिया। मुझे जॉब में लगे ठीक से 15 दिन भी नहीं हुए थे। हर दिन की तरह 22 अप्रेल, 2005 को मैं खान मार्केट जा रही थी, कि वो लड़का और उसके भाई की गर्लफ्रेंड ने आकर तेजाब डालकर मेरे चेहरे के साथ, मेरे सपनों को भी चूर-चूर कर दिया।
मासूम मां-बाबा की गुड़िया, मासूम सपने लेकर एक आस पर बाहर निकली थी। उस तेजाब ने सब बरबाद कर दिया। उस गरीबी में उन्होंने सारे अरमान पूरे किये, बस क्या था, एक पछतावा था कि हमने क्यों बाहर जाने दिया। मुझे पछतावा था कि मैं क्यों निकली बाहर, क्या ज़रूरत थी।
पर मुझे मालूम नहीं था, तेजाब क्या होता है। मेरे मां-बाप मुझे देखकर अंदर ही अंदर रोते थे। कुछ नहीं कहते थे। वो भाई बहुत छोटी उमर में बिछड़ गया अपने परिवारवालों से क्योंकि उसकी दीदी हॉस्पिटल में तड़प तड़प कर मर रही थी। उसके साथ ही मां-पापा भी। पूरा परिवार बिखर सा गया था। लेकिन इतना बड़ा हादसा करने के बाद भी उन दोनों को शर्म नहीं आई। फिर भी उनके मन में यहीं था कि कब मर जाऊं। लेकिन मैं मर ना सकी।
ढाई महीने के बाद जब मैं अपने घर गई, तो अपने आपको शीशे में देखकर डर गई। पता है दोस्तों मेरे मन में यहीं खयाल आया कि यह मेरे साथ क्या हो गया। मैंने ऐसा क्या किया था। मुझे मालूम ही नहीं था, तेजाब क्या होता है। जब पता चला तब भी मेरे मन में ऐसा नहीं हुआ कि उनके साथ ऐसा हो। बस मेरे मन में यहीं था कि उनसे पूछो कि मेरे सिर्फ ना करने पर मुझे जला दिया...क्यों...? यह सवाल है उनके लिए..।
मैं कभी नहीं चाहूंगी कि किसी के भी साथ ऐसा हो। मैं उन दोनों से नफरत भी नहीं करती क्योंकि वो मेरी नफरत के भी काबिल नहीं।
दोस्तों तेज़ाब सिर्फ चेहरा ही नहीं जलाता पूरी ज़िंदगी बर्बाद कर देता है। एक-एक सुई, ऑपरेशन, टांके, दर्द….., पूरा शरीर, घर, सब कुछ बर्बाद कर देता है। सपने जो कभी जगाए थे, वो सब मर जाते हैं। वो सारे अपने जो कभी अपने होने का अहसास दिलाया करते थे, वो दोस्त-रिश्तेदार, सबकुछ यह तेजाब जला देता है। वो हंसी जो कभी दिल से हंसी गई थी, बहुत याद आती है। वो पल जो मम्मी-पापा, भाई इन सबके साथ बिताए थे, अब सपनों की तरह हो गए हैं। जो सब कुछ छीन गया..., क्या यहीं प्यार है..?
मेरी सोच प्यार के लिए- प्यार वो है, जिसमें हमारा प्यार खुश है। प्यार वो है जिसकी लड़ाई में प्यार हो, गुस्से में प्यार हो, प्यार वो है जिसकी ना में भी हमें खुशी नज़र आए। प्यार वो है, जो दिल हो, आत्मा हो। प्यार की खुशी को देखकर जलना प्यार नहीं। प्यार देकर छीनना नहीं है, प्यार दबाब नहीं है, प्यार तेजाब नहीं है।
प्यार कोई बन्दिश नहीं होती। प्यार के आपको लेके बहुत अरमान होते हैं। किसी को प्यार करो तो उन्हें दबाब में मत रखों। प्यार की सुनो, प्यार को कहो। हम प्यार को लेकर बहुत से दावे करते हैं, पर क्या होता है? ज़रूरी तो नहीं जिससे हम प्यार करते हैं वो भी आपसे प्यार करे..। अगर मन में कुछ बात हो तो वो कह देनी चाहिए पर किसी का बुरा नहीं करना चाहिए।
मेरे साथ क्या हुआ आप सब देख सकते हैं। कुछ देर पहले वहीं इंसान प्यार के दावे कर रहा था और कुछ देर बाद उसी लड़की पर, जिससे इतना प्यार था, तेजाब डालकर जला दिया। नहीं वो प्यार हो ही नहीं सकता। तेजाब उसकी सोच में था, तेजाब उसके मन में था, प्यार तो था ही नहीं।
मैं आप सबसे यहीं कहना चाहती हूं कि प्यार कभी किसी की जान नहीं ले सकता। अगर किसी के लिए आपके मन में गुस्सा है तो उसे इसी तरह यहां ज़ाहिर कर सकते हैं जैसे मैं कर रही हूं, उनके लिए जिनके तेजाब में प्यार था।
मैं चाहती हूं कि वो लड़का अब जेल से बाहर आ जाए और खुशी-खुशी अपने बीबी-बच्चों के साथ रहे। उन्हें अच्छी परवरिश दे और वो अपने परिवार के साथ खुश रहे। मेरे मन में उनके लिए कुछ नहीं है बस यहीं जो उन्होंने किया वो माफी के काबिल नहीं। बस यहीं है कि उनको अहसास हो इस बात का कि जो किया वो गलत किया। मेरे साथ जो हुआ, मैं उसके बाद बाहर आई, मैंने उसके बाद चेहरा नहीं छुपाया। क्यों छुपाऊं, मैंने कुछ गलत नहीं किया। लेकिन जब आप जेल से बाहर आओगे तो आपको अपनी करतूतों पर बेहद दुख होगा। आज मेरे पापा नहीं है इस दुनिया में। वो अपने साथ बहुत दर्द लेकर गए हैं। आपने हमारी अच्छाईयों और मासूमियत का बहुत बड़ा फायदा उठाया, पर आप खुश रहो।"
लक्ष्मी
लक्ष्मी की कविता उस व्यक्ति के नाम जिसने उसका चेहरा तेजाब से जला डाला
"आपने तेजाब मेरे चेहरे पर नहीं,
मेरे सपनों पर डाला था।
आपके दिल में प्यार नहीं,
तेजाब हुआ करता था।
आप मुझे प्यार की नज़र से नहीं,
तेजाब की नज़र से देखा करते थे।
मुझे दुख है इस बात का कि आपका नाम,
मेरे तेजाबी चेहरे से जुड़ गया है।
वक्त इस दर्द पर कभी मरहम नहीं लगा पाएगा,
हर ऑपरेशन में मुझे तेजाब की याद दिलाएगा।
जब आपको यह पता चलेगा कि जिस चेहरे को आपने तेजाब से जलाया,
अब उस चेहरे से मुझे प्यार है,
जब आपको यह बात मालूम पड़ेगी,
वो वक्त आपको कितना रुलाएगा।
जब आपको यह बात मालूम पड़ेगी,
कि मैं आज भी ज़िंदा हूं,
अपने सपनों को साकार कर रही हूं...।"
लक्ष्मी
लक्ष्मी आज अपने सपनों को जी रही है वो आज खुश है उसने अपना प्यार पा लिया है अपना जीवन पा लिया है। आज वो उस जैसी कई और लड़कियों की हिम्मत और विश्वास बन चुकी है जिनके चेहरे को एकतरफा प्यार, पारिवारिक दुश्मनी या फिर निजी खुन्नस के कारण तेजाब डालकर जला डाला गया।
"दोस्तों मैं चाहती हूं कि आप भी इस लेटर को पढ़ें। इस लेटर में बहुत सी अनकही, अनसुनी बातें होंगी। आप हमारे बारे में बहुत कुछ जानते हैं लेकिन बहुत सी बातों से आप अनजान हैं। और मैं यह बातें लिखकर आपके सामने ला रही हूं, आप ज़रूर पढ़िएगा।
जब मेरा जन्म हुआ पापा ने बहुत खुश होकर मेरा नाम लक्ष्मी रखा था। वो कहते रहते थे कि मेरे घर लक्ष्मी आई है। पापा को बेटियों से बहुत प्यार था। मैं ही उनकी बेटी और बेटा थी। बहुत प्यार करते थे। फिर मैं बड़ी होती गई। फिर हमारा एक घर हुआ। उसी घर में मेरा बचपन था। फिर तीन सालों बाद मेरे भाई का जन्म हुआ। पापा-मम्मी ने कभी कोई कमी नहीं की।
फिर मैं जब खुद थोड़ी-थोड़ी बड़ी होने लगी तो मेरे सपने शुरू हुए। मैं बहुत गाती थी, डांस करती थी। मेरा भाई कुछ भी बजाया करता था। मैं अपने घर में, चर्च में, मंदिरों में प्रोग्राम किया करती थी। कभी राधा बनती थी, कभी परी बनती थी। गाना गाकर, डांस करके बहुत खुश थी मैं। जिस अंधेरे से मुझे प्यार था आज उसी अंधेरे से बहुत डरती हूं। जो अंधेरा मुझे रौशनी की किरन दिखाता था, लड़ना सिखाता था आज वो अंधेरा मुझे कहीं दूर ले जाता है। जब मैं बड़ी होने लगी तो मन करने लगा कि मैं जो सपने देखती हूं, उन्हें पूरा किया जाए। मेरे घरवालों ने पूछा कि क्या बनना चाहती हो। मैंने कहा सिंगर। लेकिन उन्हें पसंद नहीं आया। तब मेरे मन में आया कि जब तक खुद बाहर नहीं निकलूंगी अपने लिए कुछ नहीं कर सकती। तब मैंने अपने मम्मी पापा से कहा मैं बाहर निकलना चाहती हूं, जॉब करना चाहती हूं। उन्होंने मना कर दिया।
मैंने उन्हें समझाया कि मैं अकेले नहीं निकलती हूं, डरती हूं, जब तक बाहर नहीं जाऊंगी कैसे चलेगा। बहुत समझाने के बाद उन्होंने हां कहा। लेकिन मुझे घर से ज्यादा दूर जाना मना था। तो मैंने खान मार्केट में एक बुक शॉप पर काम पकड़ा और वहीं मैंने सिंगिंग क्लास की बात भी कर ली। पर उस वक्त तक एडमिशन खत्म हो गए थे।
उसी बीच एक लड़का था जो 32 साल का था, मेरे पीछे पड़ा था। मुझे मालूम नहीं था कि उसके मन में क्या चल रहा है। उसकी फेमिली और मेरी फेमिली एकदम फेमिली जैसे थे। ढाई साल से जानते थे। और उस लड़के ने मुझे एसिड अटैक के दस महीने पहले शादी के लिए कहा। मैं हैरान हो गई। मेरा मन बहुद दुखी हो गया। मैंने साफ-साफ कहा कि मैं आपको भाई मानती हूं, आप ऐसा कैसे सोच सकते हैं। मैंने कहा कि आज के बाद बात भी मत कर लेना। मैं उनसे बात तक नहीं करती थी। स्कूल से आते जाते, वो कहा करते थे कि बहुत सुंदर होती जा रही हो। मेरे घर के पड़ौस में ही उनका ऑफिस था। बहुत परेशान किया उन्होंने, पर मेरी हिम्मत ही नहीं हुई अपने घर में बताने की। लेकिन उन सब चीज़ो से बहुत दूर थी मैं, अपने ही सपनों में खोई थी मैं। ना जाने कहां से वो इंसान शैतान के रूप में आ गया और मेरी ज़िंदगी बरबाद कर गया। उन्होंने बहुत कोशिश की, बहुत अलग-अलग ढंग से पर वो हर बार नाकाम रहा। मैं और मेरे सपने.., वो और उसका शैतानी दिमाग..!
उसने 19 अप्रेल को मुझे एसएमएस किया, शादी करना चाहता हूं, प्यार करता हूं..., नहीं दिया मैंने वापस जवाब। फिर 21 अप्रेल को फोन आता है, तुम तो अपने मां बाप का नाम रौशन करना चाहती हो ना?... तब भी मैंने कुछ गलत जवाब नहीं दिया। बस हां कर दिया। मुझे जॉब में लगे ठीक से 15 दिन भी नहीं हुए थे। हर दिन की तरह 22 अप्रेल, 2005 को मैं खान मार्केट जा रही थी, कि वो लड़का और उसके भाई की गर्लफ्रेंड ने आकर तेजाब डालकर मेरे चेहरे के साथ, मेरे सपनों को भी चूर-चूर कर दिया।
मासूम मां-बाबा की गुड़िया, मासूम सपने लेकर एक आस पर बाहर निकली थी। उस तेजाब ने सब बरबाद कर दिया। उस गरीबी में उन्होंने सारे अरमान पूरे किये, बस क्या था, एक पछतावा था कि हमने क्यों बाहर जाने दिया। मुझे पछतावा था कि मैं क्यों निकली बाहर, क्या ज़रूरत थी।
पर मुझे मालूम नहीं था, तेजाब क्या होता है। मेरे मां-बाप मुझे देखकर अंदर ही अंदर रोते थे। कुछ नहीं कहते थे। वो भाई बहुत छोटी उमर में बिछड़ गया अपने परिवारवालों से क्योंकि उसकी दीदी हॉस्पिटल में तड़प तड़प कर मर रही थी। उसके साथ ही मां-पापा भी। पूरा परिवार बिखर सा गया था। लेकिन इतना बड़ा हादसा करने के बाद भी उन दोनों को शर्म नहीं आई। फिर भी उनके मन में यहीं था कि कब मर जाऊं। लेकिन मैं मर ना सकी।
ढाई महीने के बाद जब मैं अपने घर गई, तो अपने आपको शीशे में देखकर डर गई। पता है दोस्तों मेरे मन में यहीं खयाल आया कि यह मेरे साथ क्या हो गया। मैंने ऐसा क्या किया था। मुझे मालूम ही नहीं था, तेजाब क्या होता है। जब पता चला तब भी मेरे मन में ऐसा नहीं हुआ कि उनके साथ ऐसा हो। बस मेरे मन में यहीं था कि उनसे पूछो कि मेरे सिर्फ ना करने पर मुझे जला दिया...क्यों...? यह सवाल है उनके लिए..।
मैं कभी नहीं चाहूंगी कि किसी के भी साथ ऐसा हो। मैं उन दोनों से नफरत भी नहीं करती क्योंकि वो मेरी नफरत के भी काबिल नहीं।
दोस्तों तेज़ाब सिर्फ चेहरा ही नहीं जलाता पूरी ज़िंदगी बर्बाद कर देता है। एक-एक सुई, ऑपरेशन, टांके, दर्द….., पूरा शरीर, घर, सब कुछ बर्बाद कर देता है। सपने जो कभी जगाए थे, वो सब मर जाते हैं। वो सारे अपने जो कभी अपने होने का अहसास दिलाया करते थे, वो दोस्त-रिश्तेदार, सबकुछ यह तेजाब जला देता है। वो हंसी जो कभी दिल से हंसी गई थी, बहुत याद आती है। वो पल जो मम्मी-पापा, भाई इन सबके साथ बिताए थे, अब सपनों की तरह हो गए हैं। जो सब कुछ छीन गया..., क्या यहीं प्यार है..?
मेरी सोच प्यार के लिए- प्यार वो है, जिसमें हमारा प्यार खुश है। प्यार वो है जिसकी लड़ाई में प्यार हो, गुस्से में प्यार हो, प्यार वो है जिसकी ना में भी हमें खुशी नज़र आए। प्यार वो है, जो दिल हो, आत्मा हो। प्यार की खुशी को देखकर जलना प्यार नहीं। प्यार देकर छीनना नहीं है, प्यार दबाब नहीं है, प्यार तेजाब नहीं है।
प्यार कोई बन्दिश नहीं होती। प्यार के आपको लेके बहुत अरमान होते हैं। किसी को प्यार करो तो उन्हें दबाब में मत रखों। प्यार की सुनो, प्यार को कहो। हम प्यार को लेकर बहुत से दावे करते हैं, पर क्या होता है? ज़रूरी तो नहीं जिससे हम प्यार करते हैं वो भी आपसे प्यार करे..। अगर मन में कुछ बात हो तो वो कह देनी चाहिए पर किसी का बुरा नहीं करना चाहिए।
मेरे साथ क्या हुआ आप सब देख सकते हैं। कुछ देर पहले वहीं इंसान प्यार के दावे कर रहा था और कुछ देर बाद उसी लड़की पर, जिससे इतना प्यार था, तेजाब डालकर जला दिया। नहीं वो प्यार हो ही नहीं सकता। तेजाब उसकी सोच में था, तेजाब उसके मन में था, प्यार तो था ही नहीं।
मैं आप सबसे यहीं कहना चाहती हूं कि प्यार कभी किसी की जान नहीं ले सकता। अगर किसी के लिए आपके मन में गुस्सा है तो उसे इसी तरह यहां ज़ाहिर कर सकते हैं जैसे मैं कर रही हूं, उनके लिए जिनके तेजाब में प्यार था।
मैं चाहती हूं कि वो लड़का अब जेल से बाहर आ जाए और खुशी-खुशी अपने बीबी-बच्चों के साथ रहे। उन्हें अच्छी परवरिश दे और वो अपने परिवार के साथ खुश रहे। मेरे मन में उनके लिए कुछ नहीं है बस यहीं जो उन्होंने किया वो माफी के काबिल नहीं। बस यहीं है कि उनको अहसास हो इस बात का कि जो किया वो गलत किया। मेरे साथ जो हुआ, मैं उसके बाद बाहर आई, मैंने उसके बाद चेहरा नहीं छुपाया। क्यों छुपाऊं, मैंने कुछ गलत नहीं किया। लेकिन जब आप जेल से बाहर आओगे तो आपको अपनी करतूतों पर बेहद दुख होगा। आज मेरे पापा नहीं है इस दुनिया में। वो अपने साथ बहुत दर्द लेकर गए हैं। आपने हमारी अच्छाईयों और मासूमियत का बहुत बड़ा फायदा उठाया, पर आप खुश रहो।"
लक्ष्मी
लक्ष्मी की कविता उस व्यक्ति के नाम जिसने उसका चेहरा तेजाब से जला डाला
"आपने तेजाब मेरे चेहरे पर नहीं,
मेरे सपनों पर डाला था।
आपके दिल में प्यार नहीं,
तेजाब हुआ करता था।
आप मुझे प्यार की नज़र से नहीं,
तेजाब की नज़र से देखा करते थे।
मुझे दुख है इस बात का कि आपका नाम,
मेरे तेजाबी चेहरे से जुड़ गया है।
वक्त इस दर्द पर कभी मरहम नहीं लगा पाएगा,
हर ऑपरेशन में मुझे तेजाब की याद दिलाएगा।
जब आपको यह पता चलेगा कि जिस चेहरे को आपने तेजाब से जलाया,
अब उस चेहरे से मुझे प्यार है,
जब आपको यह बात मालूम पड़ेगी,
वो वक्त आपको कितना रुलाएगा।
जब आपको यह बात मालूम पड़ेगी,
कि मैं आज भी ज़िंदा हूं,
अपने सपनों को साकार कर रही हूं...।"
लक्ष्मी
लक्ष्मी आज अपने सपनों को जी रही है वो आज खुश है उसने अपना प्यार पा लिया है अपना जीवन पा लिया है। आज वो उस जैसी कई और लड़कियों की हिम्मत और विश्वास बन चुकी है जिनके चेहरे को एकतरफा प्यार, पारिवारिक दुश्मनी या फिर निजी खुन्नस के कारण तेजाब डालकर जला डाला गया।
Monday, February 16, 2015
एक रेडियो स्टेशन जिसकी कमान है गांव की बेटियों के हाथ में
पिछले दिनों आपने पगडंडी पर मुजफ्फरपुर के गांवों की उन लड़कियों की कथा पढ़ी थी जो अपना वीडियो न्यूज कैप्सूल और अखबार निकालती हैं. उसी कड़ी में इस बार हमारे पर आपके लिए उन लड़कियों की कहानी है जो एक रेडियो चैनल को संचालित करती हैं. यह रेडियो स्टेशन बुंदेलखंड के ललितपुर जिले में संचालित होता है. इस रेडियो स्टेशन में रिपोर्टर, प्रेजेंटर और फील्ड कोऑर्डिनेटर सब लड़कियां ही हैं. अति पिछड़े और पुरुष वर्चस्व वाले इलाके में इन बेटियों ने कैसे इस असंभव काम को अंजाम दिया आइये इसकी कथा पढ़ते हैं.
उत्तर प्रदेश के सूखाग्रस्त हिस्से बुंदेलखंड के ललितपुर जिले में एक ऐसा रेडियो स्टेशन संचालित हो रहा है जिसकी कमान जिले की बेटियों के हाथ में है. राज्य के इस पहले कम्युनिटी रेडियो 'ललित लोकवाणी' की कर्ताधर्ता रचना, उमा और विद्या नाम की लड़कियां हैं. रूढ़िवादी सोच वाले क्षेत्र से ताल्लुख रखने वाली इन बेटियों की आवाज आज ललितपुर के हर कोने में सुनी जाती है. 'ललित लोकवाणी' नामक कम्युनिटी रेडियो की शुरूआत साल 2007 में की गई थी और शुरुआत में इसका संचालन सिर्फ ललितपुर के कुछ गांवों में ही किया जाता था. इस स्टेशन को साल 2010 में वायरलैस आपरेटिंग लाइसेंस मिल गया था और अब यह 90.4 मेगाहर्ट्ज पर ललितपुर के अलापुर कस्बे के 15 किलोमीटर के दायरे में स्थित गांवों में आसानी से सुना जाता है.
रेडियो जॉकी रचना
रचना बताती हैं कि कम्युनिटी रेडियो में काम करने के बाद वो एक अलग शख्सियत बन गई हैं और अब उन्हें ललितपुर के रेडियो स्टेशन के जरिए अपने श्रोताओं से बात करना काफी अच्छा लगता है. पूरे गांव के लिए रोल मॉडल बन चुकी रचना यह बताना नहीं भूलती कि उन्हें वह दौर अब भी याद है जब उन्हें घर के किसी पुरुष सदस्य के बगैर घर के बाहर जाने की भी अनुमति नहीं थी. ललितपुर के बिरदा ब्लॉक के अलापुर में स्थित इस रेडियो स्टेशन में आकर काम करना उन्हें अच्छा लगता है. उन्हें अब भी विश्वास नहीं होता है कि वो एक रेडियो प्रोग्राम की रेडियो जॉकी बन चुकी हैं. वे अपने श्रोताओं से शिशु और मातृत्व मृत्यु दर जैसे मुद्दों पर बात करती हैं, जिससे उनका समुदाय काफी हद तक पीड़ित है.
रिपोर्टर उमा यादव हैं पांच बच्चों की मां
5 बच्चों की मां और कम्युनिटी रेडियो के 12 रिपोर्टरों में से एक उमा यादव की कहानी भी कुछ ऐसी ही है. वो बताती हैं कि अभी तक गांव की कोई भी बहू महिलाओं से जुड़े मुद्दों की पत्रकारिता करने, उनकी रिकॉर्डिंग करने और उसके समाधान करने जैसे कामकाजों में हिस्सा नहीं लिया करती थी. उमा ने बताया कि उन्हें भी शुरुआत में तकलीफों का सामना करना पड़ा, यहां तक कि उनके परिवार ने तो पहले उन्हें इस काम को करने की इजाजत नहीं दी, लेकिन बाद में जब उन्हें अहसास हुआ उनका काम कितनी जागरूकता वाला है, तब जाकर वो थोड़ा नरम हुए और मुझे इसकी इजाजत दी. अपने काम को लेकर उमा कितनी कमिटेड के इस बात का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वह अपने घर के नियमित कामकाज निपटाने के बाद करीब तीन किलोमीटर का पैदल सफर तय कर अपने अलापुर स्थित रेडियो स्टेशन पहुंचती है और अपना शो होस्ट करती है, जहां वो महिलाओं और बच्चों से जुड़े तमाम मुद्दों पर बात करती हैं.
80 गांवों में सुना जाता है ललित लोकवाणी
रचना और उमा यादव उत्तर प्रदेश के ललितपुर जिले की नई संचार क्रांति का अहम हिस्सा हैं. 'ललित लोकवाणी' राज्य का पहला का पहला कम्युनिटी रेडियो स्टेशन है, जिसमें ये दोनों बखूबी काम कर रही हैं. अब ललित लोकवाणी ललितपुर के हर कोने में सुना जाता है. इस कम्युनिटी रेडियो स्टेशन का उद्घाटन ललितपुर के जिला मजिस्ट्रेट रनवीर प्रसाद और भारतेंदु नाटक अकादमी के संयुक्त निदेशक जुगल किशोर, जो खुद थियेटर की जानी मानी शख्सियत हैं ने किया था. आज यह ललितपुर के 80 गांवों में सुना जाता है. इस रेडियो की सबसे खास बात यह है कि यह महिलाओं को प्रेरित करता है कि वो रिपोर्टिंग और एंकरिंग जैसे क्षेत्रों में कदम रखकर महिलाओं से जुड़े मुद्दों पर अन्य महिलाओं को जागरूक करने का प्रयास करें.
पहले मजाक उड़ाते थे मर्द
25 साल की ग्रेजुएट शिल्पी यादव, जो ललित लोकवाणी में फील्ड को-आर्डिनेटर हैं बताती हैं कि शुरुआत में महिलाओं को यह समझाना काफी मुश्किल था कि वो हमारे कार्यक्रम को सुनें. उन्होंने बताया कि हमने छोटे स्तर से शुरुआत की. शिल्पी ने बताया कि पहले हम गांव-गांव जाकर लोगों के समझाते थे और उनसे कहते थे कि वो उनके साथ आएं और पंचायत भवन में आकर उनके कार्यक्रम को सुनें. उन्होंने बताया कि इस दौरान गांव के मर्द हमें घेरे रहते थे और हम रेडियो पर जिन मु्द्दों पर बात करते थे वो हमारा मजाक उड़ाया करते थे. उन्होंने बताया कि जल्द ही गांव के मर्दों को समझ में आ गया कि हम उनके भले की ही बात करने वाले हैं, इसलिए उन्होंने तंग करना छोड़ दिया और हालात आज यह है आज गांव के पुरुष भी हमारे कार्यक्रम को इत्मिनान के साथ सुनते हैं.
रामकृष्ण ऑडियोसिन्स मीडिया कंबाइन ने इस रेडियो स्टेशन के 15 सदस्यों को तैयार किया है. इस संगठन ने बताया कि कम्युनिटी रेडियो एक ऐसा सशक्त माध्यम है जिसके जरिए लोगों को यह मौका मिलता है कि वो सरकार के साथ सीधे बात कर सकें. संगठन ने बताया ऐेसे में जब हम अभी सीमित दायरे में काम कर रहे हैं उसके बावजूद हम बेहतर काम कर रहे हैं और साथ ही हमें ललितपुर के लोगों की कुशलता बढ़ान के लिए भी बखूबी काम कर रहे हैं. इस रेडियो से जुड़ी एक अन्य सदस्या बताती हैं कि कम्युनिटी रेडियो के जरिए बेहतर तरीके से समाजिक बदलाव लाया जा सकता है. यह माताओं, बेटियों, बहनों को सामाजिक, शारिरिक और मानसिक स्तर पर मजबूती दे सकता है. साथ ही रेडियो के जरिए महिलाओं अपनी भावी भूमिकाओं के लेकर भी बेहतर निर्णय कर सकती हैं.
(साभार- अमर उजाला)
आपदाओं को वरदान में बदलने के हुनरमंद कोसी के किसान भिखारी मेहता
2008 की भीषण बाढ़ के बाद बिहार के सुपौल जिले के ज्यादातर खेतों में रेत बिछी है, मगर जब आप भिखारी मेहता के खेतों की तरफ जायेंगे तो देखेंगे कि 30 एकड़ जमीन पर लेमनग्रास, खस, जावा स्योनेला, आइटोमिलिया, तुलसी, मेंथा आदि के पौधे लहलहा रहे हैं. महज 13 साल की उम्र में कॉपी-किताब को अलविदा कर हल पकड़ लेने वाले भिखारी मेहता को मिट्टी से सोना उगाने के हुनर में महारत हासिल है. वे 2004 की भीषण तूफान के बाद से लगातार जैविक तरीके से औषधीय पौधों की खेती कर रहे हैं. आज उनके खेत कोसी अंचल के किसानों के लिए पर्यटन स्थल का रूप ले चुके हैं. यह खबर आज के प्रभात खबर में प्रकाशित हुई इनकी कथा को आप भी जानें...
पंकज कुमार भारतीय, सुपौल‘लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती, कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती’ को मूल मंत्र मानने वाले जिले के वीरपुर के किसान भिखारी मेहता कोसी के रेत पर जज्बे और उम्मीद की फसल उपजा रहे हैं. विषम परिस्थितियों के बीच से भी हमेशा नायक की तरह उभरने वाले भिखारी की जीवन गाथा संघर्षो से भरी है.वर्ष 2008 की कुसहा त्रसदी ने जब इलाके के किसानों को मजदूर बनने को विवश कर दिया तो भी भिखारी ने हार नहीं मानी और आज वह कोसी के कछार पर न केवल हरियाली की कहानी गढ़ रहे हैं बल्कि वर्मी कंपोस्ट उत्पादन के क्षेत्र में भी किसानों के प्रेरणास्नेत बने हुए हैं.
गरीबी ने हाथों को पकड़ाया हलभिखारी ने जब से होश संभाला खुद को गरीबी और अभाव से घिरा पाया. पिता कहने के लिए तो किसान थे लेकिन घर में दो वक्त की रोटी भी बमुश्किल मिल पाती थी. अंतत: 13 वर्ष की उम्र में वर्ष 1981 में भिखारी मेहता ने किताब-कलम को अलविदा कहा और हाथों में हल को थाम लिया. मासूम हाथों ने लोहे के हल को संभाला तो गरीबी से जंग के इरादे मजबूत होते चले गये. लेकिन पहली बार ही उसने कुछ अलग होने का संदेश दिया और परंपरागत खेती की बजाय सब्जी की खेती से अपनी खेती-बाड़ी का आगाज पैतृक गांव राघोपुर प्रखंड के जगदीशपुर गांव से किया.
निभायी अन्वेषक की भूमिकाअगाती सब्जी खेती के लिए भिखारी ने 1986 में रतनपुरा का रुख किया. 1992 तक यहां सब्जी की खेती की तो पूरे इलाके में सब्जी खेती का दौर चल पड़ा. वर्ष 1992 में सब्जी की खेती के साथ-साथ केले की खेती का श्रीगणोश किया गया. फिर 1997 में वीरपुर की ओर प्रस्थान किया, जहां रानीपट्टी में केला और सब्जी की खेती वृहद स्तर पर आरंभ किया. वर्ष 2004 का ऐसा भी दौर आया जब भिखारी 40 एकड़ में केला और 20 एकड़ में सब्जी उपजा रहे थे. भिखारी के नक्शे कदम पर चलते हुए पूरे इलाके में किसानों ने वृहद् पैमाने पर केले की खेती आरंभ कर दी. यह वही दौर था जब वीरपुर का केला काठमांडू तक अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहा था. इलाके के किसानों के बीच केला आर्थिक क्रांति लेकर आया और समृद्धि की नयी इबारत लिखी गयी.
2004 का तूफान टर्निग प्वाइंटभिखारी जब केला के माध्यम से समृद्धि की राह चल पड़ा तो वर्ष 2004 अगस्त में आया भीषण तूफान उसकी जिंदगी का टर्निग प्वाइंट साबित हुआ. पलक झपकते ही केला की खेती पूरी तरह बर्बाद हो गयी और एक दिन में लखपती भिखारी सचमुच भिखारी बन गया. बावजूद उसने परिस्थितियों से हार नहीं मानी. विकल्प की तलाश करता हुआ औषधीय खेती की ओर आकर्षित हुआ. वर्ष 2005 में भागलपुर और इंदौर में औषधीय एवं सुगंधित पौधे के उत्पादन की ट्रेनिंग ली और मेंथा तथा लेमनग्रास से इसकी शुरुआत की. रानीगंज स्थित कृषि फॉर्म में भोपाल से लाये केंचुए की मदद से वर्मी कंपोस्ट उत्पादन की नींव डाली. इस प्रकार एक बार फिर भिखारी की गाड़ी चल पड़ी.
कुसहा त्रसदी साबित हुआ अभिशाप18 अगस्त 2008 की तारीख जो कोसी वासियों के जेहन में महाप्रलय के रूप में दर्ज है, भिखारी के लिए अभिशाप साबित हुई. हालांकि उसने अभिशाप को जज्बे के बल पर वरदान में बदल डाला. कोसी ने जब धारा बदली तो भिखारी का 20 एकड़ केला, 20 एकड़ सब्जी की खेती, 20 एकड़ लेमनग्रास, 20 एकड़ पाम रोज एवं अन्य औषधीय पौधे नेस्त-नाबूद हो गये. कंगाल हो चुके श्री मेहता को वापस अपने गांव लौटना पड़ा. लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और 2010 में पुन: वापस वीरपुर स्थित फॉर्म हाउस पहुंचे.
रेत पर लहलहायी लेमनग्रास और मेंथाकोसी ने जिले के 83403 हेक्टेयर क्षेत्र में बालू की चादर बिछा दी. जिसमें बसंतपुर का हिस्सा 21858 हेक्टेयर था. ऐसे में इस रेत पर सुनहरे भविष्य की कल्पना आसान नहीं थी. लेकिन प्रयोगधर्मी भिखारी ने फिर से न केवल औषधीय पौधों की खेती आरंभ की बल्कि नर्सरी की भी शुरुआत कर दी. वर्ष 2012 में जब तत्कालीन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार श्री मेहता के फॉर्म पर पहुंचे तो 30 एकड़ में लहलहा रहे लेमनग्रास, खस, जावा स्योनेला, आइटोमिलिया, तुलसी, मेंथा को देख भौंचक्क रह गये और वर्मी कंपोस्ट इकाई से काफी प्रभावित हुए. आज श्री मेहता रेत पर ना केवल हरियाली के नायक बने हुए हैं बल्कि 3000 मैट्रिक टन सलाना वर्मी कंपोस्ट का उत्पादन कर रहे हैं. वर्मी कंपोस्ट की मांग को देखते हुए उत्पादन बढ़ाना चाहते हैं लेकिन संसाधन आड़े आ रही है.
अब किसानों के बीच बांट रहे हरियालीहरियाली मिशन से जुड़ कर श्री मेहता अब किसानों के बीच मुफ्त में इमारती और फलदार पेड़ बांट रहे हैं. उनका मानना है कि रेत से भरी जमीन में पेड़-पौधे के माध्यम से ही किसान समृद्धि पा सकते हैं. वे अपने सात एकड़ के फॉर्म हाउस को प्रशिक्षण केंद्र में तब्दील कर चुके हैं, जहां किसान वर्मी कंपोस्ट उत्पादन और औषधीय खेती के गुर सीखने पहुंचते हैं. कृषि के क्षेत्र में उनके समर्पण का ही परिणाम है कि उन्हें वर्ष 2006 में कोसी विभूति पुरस्कार और 2007 में किसान भूषण पुरस्कार से नवाजा जा चुका है. वर्ष 2014 में जीविका द्वारा भी उन्हें कृषि क्षेत्र में बेहतर प्रदर्शन के लिए पुरस्कृत किया गया. बकौल भिखारी मेहता ‘जमीन में असीम उर्जा होती है, तय आपको करना है कि कितनी दूर आप चलना चाहते हैं’.
Sunday, February 15, 2015
जिंदगी को सफल बनाने का तरीका |
रेगिस्तानी मैदान से एक साथ कई ऊंट अपने मालिक के साथ जा रहे थे। अंधेरा होता देख मालिक ने एक सराय में रुकने का आदेश दे दिया। निन्यानवे ऊंटों को जमीन में खूंटियां गाड़कर उन्हें रस्सियों से बांध दिया मगर एक ऊंट के लिए रस्सी कम थी ,काफ़ी खोजबीन की , पर व्यवस्था हो नहीं पाई। तब सराय के मालिक ने सलाह दी कि तुम खूंटी गाड़ने जैसी चोट करो और ऊंट को रस्सी से बांधने का अहसास करवाओ।
यह बात सुनकर मालिक हैरानी में पड़ गया , पर दूसरा कोई रास्ता नहीं था , इसलिए उसने वैसा ही किया।
झूठी खूंटी गाड़ी गई , चोटें की गईं। ऊंट ने चोटें सुनीं और समझ लिया कि बंध चुका है। वह बैठा और सो गया।
सुबह निन्यानबे ऊंटों की खूटियां उखाड़ीं और रस्सियां खोलीं , सभी ऊंट उठकर चल पड़े , पर एक ऊंट बैठा रहा। मालिक को आश्चर्य हुआ - अरे , यह तो बंधा भी नहीं है , फिर भी उठ नहीं रहा है।
सराय के मालिक ने समझाया - तुम्हारे लिए वहां खूंटी का बंधन नहीं है मगर ऊंट के लिए है। जैसे रात में व्यवस्था की , वैसे ही अभी खूंटी उखाड़ने और बंधी रस्सी खोलने का अहसास करवाओ।
मालिक ने खूंटी उखाड़ दी जो थी ही नहीं , अभिनय किया और रस्सी खोल दी जिसका कोई अस्तित्व नहीं था। इसके बाद ऊंट उठकर चल पड़ा।
दोस्तो ऐसा हम इंसानो के साथ भी होता है हम भी ऐसी ही खूंटियों से और रस्सियों से बंधे होते हैं जिनका कोई अस्तित्व नहीं होता। मनुष्य बंधता है अपने ही गलत दृष्टिकोण से , गलत सोच से , विपरीत मान्यताओं की पकड़ से। ऐसा व्यक्ति सच को झूठ और झूठ को सच मानता है। वह दोहरा जीवन जीता है। उसके आदर्श और आचरण में लंबी दूरी होती है। इसलिए जरूरी है कि मनुष्य का मन जब भी जागे , लक्ष्य का निर्धारण सबसे पहले करे।
बिना उद्देश्य मीलों तक चलना सिर्फ थकान , भटकाव और निराशा देगा , मंजिल नही।
जिंदगी को सफल बनाने का एक ही तरीका है अपना लक्ष्य निर्धारित करो और उसी दिशा मे काम करो...
यह बात सुनकर मालिक हैरानी में पड़ गया , पर दूसरा कोई रास्ता नहीं था , इसलिए उसने वैसा ही किया।
झूठी खूंटी गाड़ी गई , चोटें की गईं। ऊंट ने चोटें सुनीं और समझ लिया कि बंध चुका है। वह बैठा और सो गया।
सुबह निन्यानबे ऊंटों की खूटियां उखाड़ीं और रस्सियां खोलीं , सभी ऊंट उठकर चल पड़े , पर एक ऊंट बैठा रहा। मालिक को आश्चर्य हुआ - अरे , यह तो बंधा भी नहीं है , फिर भी उठ नहीं रहा है।
सराय के मालिक ने समझाया - तुम्हारे लिए वहां खूंटी का बंधन नहीं है मगर ऊंट के लिए है। जैसे रात में व्यवस्था की , वैसे ही अभी खूंटी उखाड़ने और बंधी रस्सी खोलने का अहसास करवाओ।
मालिक ने खूंटी उखाड़ दी जो थी ही नहीं , अभिनय किया और रस्सी खोल दी जिसका कोई अस्तित्व नहीं था। इसके बाद ऊंट उठकर चल पड़ा।
दोस्तो ऐसा हम इंसानो के साथ भी होता है हम भी ऐसी ही खूंटियों से और रस्सियों से बंधे होते हैं जिनका कोई अस्तित्व नहीं होता। मनुष्य बंधता है अपने ही गलत दृष्टिकोण से , गलत सोच से , विपरीत मान्यताओं की पकड़ से। ऐसा व्यक्ति सच को झूठ और झूठ को सच मानता है। वह दोहरा जीवन जीता है। उसके आदर्श और आचरण में लंबी दूरी होती है। इसलिए जरूरी है कि मनुष्य का मन जब भी जागे , लक्ष्य का निर्धारण सबसे पहले करे।
बिना उद्देश्य मीलों तक चलना सिर्फ थकान , भटकाव और निराशा देगा , मंजिल नही।
जिंदगी को सफल बनाने का एक ही तरीका है अपना लक्ष्य निर्धारित करो और उसी दिशा मे काम करो...
Rudel urf Darshan Singh an Organic Farmer from Punjab.
I met rudel in 2002 when i was doing Shodh Yatra in Punjab. My Friend Khushaal Chand Lali Editor of Satya Swadesh Newspaper introduced me to him. I stayed for 2 days at his organic farm. He renounced his French citizenship for embracing the Sikh faith, came to India, married here and settled in Punjab. Living here since past many years, he is disappointed with the current politicians of Punjab who, according to him, have completely diverted from the path shown by the Gurus.
Darshan Singh Rudel, 57, a French national, earlier known as Michael Rudel, had converted to the Sikh faith and married a Sikh woman. Now settled at Nurpur Bedi in Ropar district, Rudel is doing organic farming for the past 17 years.
Rudel had requested a French court in 1995 for changing his name from Michael Rudel to Darshan Singh Rudel, which was declined. Thereafter, he renounced French citizenship and became a UK national, which had issued him a passport in his new name -- Darshan Singh Rudel.
In 1997, he became an amritdhari (baptized) Sikh at Anandpur Sahib - the place of birth of Khalsa -- and married Malvinder Kaur, who teaches English at a college in Nangal. The couple is living at Nurpur Bedi since then. He strictly follows the tenets of Sikhi and has even written outside his house that "drunkards are not allowed to enter."
Darshan Singh, a dedicated Sikh missionary with profound knowledge of "gurbani" and "gurmat", said that Sikhs were known for their honesty, integrity, hard work and bravery. But today's politicians have created an environment in Punjab where all such virtues are evaporating, he said.
Harvesting wheat at his fields, Rudel states, "Politicians in Punjab are confined to making money and fighting each other. They don't focus on larger social issues of the state and have almost forgotten the concept of 'sarbat da bhala' (welfare of all). Today, Punjabis have stopped working in farms, become drug addicts and distanced themselves from hard work and have become money-centric."
He further felt that politicians in Punjab have stopped bothering about pollution in the rivers of the state and are promoting multinational companies (MNCs) due to which people of the state are forced to consume poison by using chemical fertilizers and pesticides for their crops.
"Youth from Punjab, once considered a nursery for defence forces since British era, have stopped joining the Army and politicians are not even bothered about such issues," he stated.
Rudel, who uses only organic methods at his farm, said Punjab needs "genetically modified corruption-free politicians", who are nowhere in sight.
Darshan Singh had to face the wrath of policemen in Delhi in 1991 for sporting a turban while coming to India. He was subjected to interrogation for several hours to ensure that he was not a militant or sympathizer of Sikh hardliners. He had also written to the then Union home minister, Shankar Rao Chavan that all Sikhs should not be treated as militants. However, no reply was ever received from the minister, he said.
Rudel had requested a French court in 1995 for changing his name from Michael Rudel to Darshan Singh Rudel, which was declined. Thereafter, he renounced French citizenship and became a UK national, which had issued him a passport in his new name -- Darshan Singh Rudel.
In 1997, he became an amritdhari (baptized) Sikh at Anandpur Sahib - the place of birth of Khalsa -- and married Malvinder Kaur, who teaches English at a college in Nangal. The couple is living at Nurpur Bedi since then. He strictly follows the tenets of Sikhi and has even written outside his house that "drunkards are not allowed to enter."
Darshan Singh, a dedicated Sikh missionary with profound knowledge of "gurbani" and "gurmat", said that Sikhs were known for their honesty, integrity, hard work and bravery. But today's politicians have created an environment in Punjab where all such virtues are evaporating, he said.
Harvesting wheat at his fields, Rudel states, "Politicians in Punjab are confined to making money and fighting each other. They don't focus on larger social issues of the state and have almost forgotten the concept of 'sarbat da bhala' (welfare of all). Today, Punjabis have stopped working in farms, become drug addicts and distanced themselves from hard work and have become money-centric."
He further felt that politicians in Punjab have stopped bothering about pollution in the rivers of the state and are promoting multinational companies (MNCs) due to which people of the state are forced to consume poison by using chemical fertilizers and pesticides for their crops.
"Youth from Punjab, once considered a nursery for defence forces since British era, have stopped joining the Army and politicians are not even bothered about such issues," he stated.
Rudel, who uses only organic methods at his farm, said Punjab needs "genetically modified corruption-free politicians", who are nowhere in sight.
Darshan Singh had to face the wrath of policemen in Delhi in 1991 for sporting a turban while coming to India. He was subjected to interrogation for several hours to ensure that he was not a militant or sympathizer of Sikh hardliners. He had also written to the then Union home minister, Shankar Rao Chavan that all Sikhs should not be treated as militants. However, no reply was ever received from the minister, he said.
उपर वाले की महिमा
एक अमीर आदमी था। उसने समुद्र मेँ अकेले घूमने के लिए एक नाव बनवाई।छुट्टी के दिन वह नाव लेकर समुद्र की सैर करने निकला। आधे समुद्र तक पहुंचा ही था कि अचानकएक जोरदार तूफान आया। उसकी नाव पुरी तरह से तहस-नहस हो गई लेकिन वह लाईफ जैकेट की मदद से समुद्र मेँ कुद गया। जब तूफान शांत हुआ तब वह तैरता तैरता एक टापू पर पहुंचा लेकिन वहाँ भी कोई नही था। टापू के चारोँ ओर समुद्र के अलावा कुछ भी नजर नही आ रहा था। उस आदमी ने सोचा कि जब मैंने पूरी जिदंगी मेँ किसी का कभी भी बुरा नही किया तो मेरे साथ ऐसा क्यूँ हुआ..???उस आदमी को लगा कि भगवान ने मौत से बचाया तो आगे का रास्ता भी भगवान ही बताएगा। धीरे धीरे वह वहाँ पर उगे झाड-पत्ते खाकर दिन बिताने लगा। अब धीरे-धीरे उसकी श्रध्दा टूटने लगी,भगवान पर से उसका विश्वास उठ गया। उसको लगा कि इस दुनिया मेँ भगवान है ही नही। फिर उसने सोचा कि अब पूरी जिंदगी यही इस टापू पर ही बितानीहै तो क्यूँ ना एक झोपडी बना लूँ……?? फिर उसने झाड की डालियो और पत्तोसे एक छोटी सी झोपडी बनाई। उसने मन ही मन कहा कि आज से झोपडी मेँ सोने को मिलेगा आज से बाहर नही सोना पडेगा। रात हुई ही थी कि अचानक मौसम बदला बिजलियाँ जोर जोर से कड़कने लगी.! तभी अचानक एक बिजली उस झोपडी पर आ गिरी और झोपडी धधकते हुए जलने लगी। यह देखकर वह आदमी टूट गया आसमान की तरफ देखकर बोला तू भगवान नही, राक्षस है।तुझमे दया जैसा कुछ है ही नही तू बहुत क्रूर है! वह व्यक्ति हताश होकर सर पर हाथ रखकर रो रहा था। कि अचानक एक नाव टापू के पास आई। नाव से उतरकर दो आदमी बाहर आये और बोले कि हम तुम्हेँ बचाने आयेहैं। दूर से इस वीरान टापू मे जलता हुआ झोपडा देखा तो लगा कि कोई उस टापू पर मुसीबत मेँ है।अगर तुम अपनी झोपडी नही जलाते तोहमे पता नही चलता कि टापू पर कोई है।उस आदमी की आँखो से आँसू गिरने लगे। उसने ईश्वर से माफी माँगी और बोला कि मुझे क्या पता कि आपने मुझे बचाने के लिए मेरी झोपडी जलाई थी।
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